UP board syllabus

UP Board syllabus राजमुकुट – नाटक – व्यथित ‘हृदय’

BoardUP Board
Text bookNCERT
SubjectSahityik Hindi
Class 12th
हिन्दी नाटक-राजमुकुट – व्यथित ‘हृदय’
Chapter 5
CategoriesSahityik Hindi Class 12th
website Nameupboarmaster.com

(कानपुर, बुलन्दशहर, मथुरा, बस्ती, मिर्जापुर, देविरया, बांदा, रामपुर जिलों के लिए निर्धारित)

प्रश्न-पत्र में पठित नाटक से चरित्र-चित्रण, नाटक के तत्वों व तथ्यों पर आधारित दो प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक का
उत्तर लिखना होगा, इसके लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

नाटक का सार

राजमकट’ नाटक के रचयिता श्री व्यथित हृदय हैं। प्रस्तुत नाटक आकर्षक, साहित्यिक एवं संवाद प्रधान शैली रचित एक ऐतिहासिक नाटक है। नाटक का कथानक मुगलकाल के उस खण्ड से सम्बन्धित है, जो भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण एवं गौरवशाली माना जाता है। इस नाटक के नायक महाराणा प्रताप हैं, जो भारत के इस महत्त्वपूर्ण एवं गौरवशाली इतिहास खण्ड में देश की स्वतन्त्रता और अखण्डता के प्रतीक के रूप में अपना प्रभावशाली और स्तुत्य स्थान रखते हैं।
महाराणा प्रताप के जीवन की अनेक प्रेरणास्पद और अनुकरण करने योग्य घटनाओं को ही मुख्य रूप से नाटक के कथानक का आधार बनाया गया है और इन घटनाओं को गतिशीलता के साथ प्रस्तुत किया गया है। नाटक में यत्र-तत्र काल्पनिक तत्वों का भी समावेश किया गया है, जिससे कि उस युग का समस्त परिवेश अपनी वास्तविकता के साथ जीवन्त हो उठे। साहित्यकार ने ऐसा इसलिए किया है, जिससे छात्रों को ऐतिहासिक सन्दभों के साथ-ही-साथ आधुनिक युग की समस्याओं का भी ज्ञान हो सके और वे आज के सन्दर्भ में देश-प्रेम, राष्ट्रीय एकता, भावात्मक समन्वय तथा अन्तर्राष्ट्रीय चेतना जैसे मानवीय मूल्यों को हृदयंगम कर सकें।
इस नाटक में पात्रों के माध्यम से जीवन के प्रति निष्ठा तथा सहयोग एवं सदभावना के प्रति आस्था की सृष्टि तो साहित्यकार ने की है, साथ ही छात्रों को ऐतिहासिकता के प्रसंग में उन पौराणिक एवं प्राचीन भारतीय मूल्यों से भी परिचित कराया है, जो अनादि काल से हमारे देश की संस्कृति के सार्थक अंग रहे हैं। नाटक में ऐसे तत्त्व भी विद्यमान हैं, जो छात्रों का परिचय राजनीतिक गुत्थियों से कराते हैं, एक तरफ उन्हें मानवतावादी दृष्टिकोण तथा बन्धुत्व की भावना से ओत-प्रोत करते हैं, तो दूसरी ओर शोषण, अत्याचार और बर्बरता की घृणित मनोवृत्तियों के प्रति उनके मन में वितृष्णा एवं क्षोभ जागृत करते हैं। नाटक में घटित सभी घटनाओं को साहित्यकार ने इस प्रकार प्रस्तुत किया है, जिससे कि छात्र इनसे प्रेरणा प्राप्त करें तथा अपने जीवन में देश भक्ति एवं राष्ट्रहित को ही सर्वोपरि स्थान देने का संकल्प लें। ।

कथावस्तु पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1. ‘राजमुकट’ नाटक के प्रथम अंक की कथा अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर मेवाड़ में राणा जगमल अपने वंश की मर्यादा का निर्वाह न करके सुरा-सुन्दरी में डूबा हुआ था। अपने भोग-विलास एवं आनन्द में किसी भी प्रकार की बाधा सहन नहीं करने वाला राणा जगमल एक क्रूर शासक बन गया था। उसने कुछ चाटुकारों के कहने पर निरपराध विधवा प्रजावती की नृशंस हत्या करवा दी, जिससे प्रजा में क्रोध की ज्वाला भड़क उठी। प्रजावती के शव को लेकर प्रजा राष्ट्रनायक चन्दावत के घर पहुंची। इसी समय कुँवर शक्तिसिंह ने राणा जगमल के क्रूर सैनिकों के हाथों से एक भिखारिणी की रक्षा की। जगमल के कार्यों से खिन्न शक्तिसिंह को चन्दावत ने कर्म-पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। एक दिन जब जगमल राजसभा में आनन्द मना रहा था, तो राष्ट्रनायक चन्दावत वहाँ पहुंचे
और जगमल को उसके घृणित कार्यों के प्रति सचेत करते हुए उसे प्रजा से क्षमा याचना के लिए कहा। । जगमल ने उनकी बात स्वीकार करते हुए स्वयं से योग्य उत्तराधिकारी चुनने के लिए कहा और अपनी तलवार एवं राजमुकुट उन्हें सौंप दिया।
राष्ट्रनायक चन्दावत राणा प्रताप को जगमल का उत्तराधिकारी बनाया तथा उन्हें राजमुकुट एवं तलवार सौंप दी। प्रताप मेवाड़ के राणा बन गए। अब सुरा सुन्दरी के स्थान पर शौर्य एवं त्याग-भावना की प्रतिष्ठा हुई। प्रजा प्रसन्नतापूर्वक राणा प्रताप की जय-जयकार करने लगी।

प्रश्न 2. ‘राजमुकुट’ नाटक के द्वितीय अंक की कथा का सार अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर मेवाड़ के राणा बनकर प्रताप ने अपनी प्रजा को अपने खोए हए सम्मान को पनः प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया। प्रजा में वीरत्व का संचार करने के लिए उन्होंने ‘अहेरिया’ उत्सव का आयोजन किया। इस उत्सव में प्रत्येक क्षत्रिय को एक
वन्य-पशु का आखेट करना अनिवार्य था।
इसी आखेट के क्रम में एक जंगली सूअर के आखेट को लेकर राणा प्रताप और शक्तिसिंह में विवाद उत्पन्न हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों भाई शस्त्र निकाल कर एक-दूसरे पर झपट पड़े। भावी अनिष्ट की आशंका से राजपुरोहित ने बीच-बचाव करने का प्रयत्न किया, परन्तु दोनों ही नहीं माने। राजकुल को अमंगल से बचाने के लिए राजपुरोहित ने अपने ही हाथों, अपनी कटार
अपनी छाती में घोंप ली और प्राण त्याग दिए। राणा प्रताप ने शक्तिसिंह को देश (राज्य) से निर्वासित कर दिया। शक्तिसिंह मेवाड़ से निकलकर अकबर की सेना से जा मिला।

प्रश्न 3. ‘राजमुकुट’ नाटक के तृतीय अंक की कथा का सार/कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।

उत्तर राजा मानसिंह राणा प्रताप के चरित्र एवं गुणों से बहुत प्रभावित थे, इसलिए वे राणा प्रताप से मिलने आए। राजा मानसिंह की बुआ का विवाह सम्राट अकबर के साथ हुआ। अत: राणा प्रताप ने उन्हें धर्म से च्युत एवं विधर्मियों का सहायक समझकर उनसे भेंट नहीं की। उन्होंने राजा मानसिंह के स्वागतार्थ अपने पुत्र अमर सिंह को नियुक्त किया। इससे मानसिंह ने स्वयं को अपमानित महसूस किया और वे उत्तेजित हो गए। अपने अपमान का बदला चुकाने की धमकी देकर वे चले गए। तत्कालीन समय में
दिल्ली का सम्राट अकबर मेवाड़-विजय के लिए रणनीति बना रहा था। उसने सलीम, मानसिंह एवं शक्तिसिंह के नेतृत्व में एक विशाल मुगल सेना मेवाड़ भेजी। हल्दीघाटी के मैदान में भीषण युद्ध हुआ। मानसिंह से बदला लेने के लिए राणा प्रताप मुगल सेना।
के बीच पहुंच गए और मुगलों के व्यूह में फँस गए। राणा प्रताप को मुगलों से घिरा देख चन्दावत ने राणा प्रताप के सिर से मुकुट उतार कर अपने सिर पर पहन लिया और युद्धभूमि में अपने प्राणों की बलि दे दी। राणा प्रताप बच गए। उन्होंने युद्धभूमि छोड़ दी। दो मुगल सैनिकों ने राणा प्रताप का पीछा किया, जिसे शक्तिसिंह ने देख लिया। शक्तिसिंह ने उन मुगल सैनिकों का पीछा करके उन्हें
मार गिराया। शक्तिसिंह और राणा प्रताप गले मिले। उनके आँसुओं से उनका समस्त वैमनस्य धुल गया। उसी समय राणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक की मृत्यु हो गई, जिससे राणा प्रताप को अपार दुःख हुआ।

प्रश्न 4. ‘राजमुकुट’ नाटक के अन्तिम (चतुर्थ) अंक की कथा संक्षिप्त रूप में लिखिए।

अथवा नाटक के मार्मिक स्थल पर प्रकाश डालिए।

अथवा ‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर महाराणा प्रताप एवं अकबर की भेंट का वर्णन कीजिए।

उत्तर हल्दीघाटी का युद्ध समाप्त हो जाने पर भी राणा ने अकबर से हार नहीं मानी। अकबर ने प्रताप की देशभक्ति, आत्म-त्याग एवं शौर्य से प्रभावित होकर उनसे भेंट करने की इच्छा प्रकट की। शक्तिसिंह साधु-वेश में देश में विचरण कर रहा था और
प्रजा में देशप्रेम की भावना तथा एकता की भावना जाग्रत कर रहा था। अकबर के मानवीय गुणों से परिचित होने के कारण शक्तिसिंह ने प्रताप से अकबर की भेंट को छल-प्रपंच नहीं माना। उसका विचार था कि दोनों के मेल से देश में शान्ति एवं एकता
की स्थापना होगी। इस चतुर्थ अंक में ही नाटक का मार्मिक स्थल समाहित है। एक दिन राणा प्रताप के पास वन में एक संन्यासी आया, जिसका उचित स्वागत-सत्कार न कर पाने के कारण राणा प्रताप अत्यन्त खिन्न हुए। अतिथि को भोजन देने के लिए राणा
प्रताप की बेटी चम्पा घास के बीजों की बनी रोटी लेकर आई। उसी समय कोई वनबिलाव चम्पा के हाथ से रोटी छीनकर भाग गया। इसी क्रम में चम्पा गिर गई और सिर में गहरी चोट लगने से स्वर्ग सिधार गई।

कुछ समय बाद अकबर संन्यासी वेश में वहाँ आया और प्रताप से
बोला—“आप उस अकबर से तो सन्धि कर सकते हैं, जो भारतमाता को अपनी माँ समझता है और आपकी भाँति ही उसकी जय बोलता है। मृत्यु-शैया पर पड़े महाराणा प्रताप को रह-रहकर अपने देश की याद आती है। वे अपने बन्ध-बाँधवों पत्रों और सम्बन्धियों को मातभमि की स्वतन्त्रता एवं रक्षा का व्रत दिलाते हुए भारतमाता की जय बोलते हुए स्वर्ग सिधार जाते हैं।

प्रश्न 5. ‘राजमुकुट’ नाटक के शीर्षक का औचित्य बताइए।

उत्तर नाटककार श्री व्यथित हृदय ने प्रस्तत नाटक का शीर्षक ‘राजमुकुट इसलिए रखा है. क्योंकि सम्पर्ण नाटक राजमकट की प्रतिष्ठा के इर्द-गिर्द ही। घूमता है और अन्तिम अंक में इसी राजमुकुट ने मेवाड़ के राणा प्रताप की जान बचाकर मेवाड़ के शासक की रक्षा की, ताकि आने वाले समय में मेवाड़ अपनी आन एवं शान को बरकरार रख सके तथा खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः ।
प्राप्त कर सके। प्रस्तुत नाटक का आरम्भ ही राजमुकुट की मर्यादाओं की प्रतिष्ठापना से होता है। राणा जगमल की विलासितापूर्ण जीवन-शैली से व्यथित प्रजा एवं राष्ट्रनायक कृष्णजी चन्दावत द्वारा राजमुकुट की मर्यादाओं की रक्षा करने में असक्षम राजा जगमल से राजमुकुट वापस लेकर राणा प्रताप को सौंपा जाता है। राणा प्रताप देश की स्वतन्त्रता को राजमुकुट की मान-प्रतिष्ठा से जोड़ देते हैं तथा मरते दम तक अपने संकल्प की रक्षा करते हैं। राष्ट्रनायक कृष्णजी। चन्दावत मेवाड़ के शासक राणा प्रताप की जान बचाने के लिए स्वयं राजमुकुट धारण कर लेते हैं। यह राजमुकुट ही था, जो शासकों को अपने देश की स्वतन्त्रता हेतु मर-मिटने का सन्देश भी देता है और मेवाड़ के शासक की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है। अत: नाटक के कथानक के अनुसार नाटक का शीर्षक ‘राजमुकुट पूर्णतया उपयुक्त एवं सार्थक है।

प्रश्न 6. राजमुकुट नाटक की ऐतिहासिकता पर प्रकाश डालते हुए उसकी कथावस्तु लिखिए।

अथवा नाट्य-कला की दृष्टि से ‘राजमुकुट’ नाटक की समीक्षा
कीजिए।

अथवा ‘राजमुकुट’ नाटक की कथा की विशेषताओं पर प्रकाश
डालिए।

अथवा राजमुकुट नाटक का कथासार/कथावस्तु प्रस्तुत कीजिए।

अथवा कथावस्तु की दृष्टि से ‘राजमुकुट’ नाटक की समीक्षा लिखिए।

उत्तर प्रस्तुत नाटक ‘राजमुकुट’ का कथानक विशुद्ध ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है, जिसमें कई काल्पनिक तत्त्वों का समावेश किया गया है। महाराणा प्रताप के शौर्यपूर्ण जीवन से सम्बन्धित इस नाटक का प्रारम्भ महाराणा के राजमुकुट धारण करने से होता है। कथानक के विकास में शक्तिसिंह और राणा का विवाह, अकबर की सेना का मेवाड़ पर आक्रमण, हल्दीघाटी का युद्ध, महाराणा प्रताप का वन-वन भटकना, उनकी मृत्यु आदि अनेक सहायक सोपान हैं। कथानक के अन्तर्गत काल्पनिक तत्त्वों का समावेश आधुनिक समाज की कुछ समस्याओं का बोध कराने के लिए किया गया है। कथानक में देशप्रेम, राष्टीय एकता. भावात्मक समन्वय तथा अन्तराष्ट्रिीय चेतना जैसे मानवीय मूल्यों को महत्त्व देकर इसे व्यापक स्तर पर देशकाल के लिए उपयोगी यानि प्रासंगिक बना दिया गया है। कथानक के अन्तर्गत प्राचीन भारतीय मूल्यों एवं संस्कृति की श्रेष्ठता को भी दर्शाया गया है। इस नाटक का कथानक सुगठित, सशक्त उददेश्यपर्ण, सुन्दर एवं प्रासंगिक है। इस प्रकार । कथानक की दृष्टि से ‘राजमकट’ एक सफल नाटक है

प्रश्न 7. ‘राजमुकुट’ नाटक में देशकाल और वातावरण का सफल निर्वाह हुआ है। इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर प्रस्तुत नाटक का कथानक ऐतिहासिक होने के कारण नाटककार ने इतिहास की प्रामाणिकता को बहुत महत्त्वपूर्ण माना है तथा उसे महत्त्व दिया है। प्रस्तुत नाटक में अकबर के काल के वातावरण को चित्रित किया गया है, जिसमें नाटककार को
अत्यधिक सफलता प्राप्त हुई है। युद्ध का दृश्य अत्यन्त सजीव बन पड़ा है। नाटक में तत्कालीन राजस्थान का परिवेश मुखरित हो उठा है। तत्कालीन समाज के अनुरूप संवादों एवं पात्रों की योजना ने वातावरण के चित्रण को और अधिक स्वाभाविकता प्रदान की है।

प्रश्न 8. ‘राजमुकुट’ की संवाद-योजना (कथोपकथन) की समीक्षा कीजिए।

उत्तर संवाद-योजना की दृष्टि से ‘राजमुकुट’ नाटक पूर्णतया सफल नाटक है। इस नाटक के संवाद सुन्दर, सरल, सहज, सरस, संक्षिप्त एवं पात्रों के अनुकूल हैं। ये संवाद मनोभावों को भी अभिव्यक्त करने में पूर्णतया सफल हैं। संवादों में कहीं ओज है, तो कहीं माधुर्य। नाटक की संवाद-योजना में इन खूबियों के बावजूद कुछ कमियाँ भी हैं। इसमें स्वगत कथनों की अधिकता है, जिससे पाठक एवं दर्शक को अरुचि होती है। संवादों में कसाव एवं संक्षिप्तता का भी अभाव है। संवादों में कहीं-कहीं असम्बद्धता भी दिखाई देती है, जिससे पाठक पर नाटक का प्रभाव नहीं पड़ पाता।।

प्रश्न 9. ‘राजमुकुट’ नाटक की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

उत्तर भाषा प्रस्तुत नाटक की भाषा साहित्यिक खड़ीबोली है। संस्कतनिष्ठ शब्दों के प्रयोग से यद्यपि भाषा में कुछ क्लिष्टता उत्पन्न हुई है तथापि इसका समायोजन कुशलतापूर्वक किया गया है, जिसके कारण इसमें माधुर्य एवं ओज बना रहता है। क्लिष्टता आने का कारण संस्कृत के शब्दों की बहुलता है। इसकी भाषा में मुहावरों, लोकोक्तियों एवं अलंकारों का प्रयोग खुलकर हुआ है, जिससे भाषा में आकर्षण बढ़ा है।
जैसे—“वह देश में छाई हुई दासता की निशा पर सचमुच सूर्य बनकर हँसेगा, आलोक पुंज बनकर ज्योतित होगा। उसका प्रताप अजेय है, उसका पौरुष गेय है। इस प्रकार, भाषा की दृष्टि से ‘राजमुकुट’ एक सफल नाटक है। शैली इस नाटक की शैली वर्णनात्मक है। शैली की दृष्टि से यह नाटक सफल नाटक है। उदाहरण दृष्टव्य है-
“मैं लालसा की वेदी पर मानवता की हत्या कभी नहीं कर सकता।”
“मैं मेवाड़ का राजपूत हैं। मेवाड़ी राजपूत अपने प्राणों से भी अधिक
अपनी मातृभूमि को चाहता है और चाहता है अपने देश के गौरव को।।”

प्रश्न 10. ‘राजमुकुट’ नाटक की अभिनेयता (रंगमंचीयता) पर प्रकाश डालिए। ।

उत्तर अभिनेयता की दृष्टि से ‘राजमकट’ नाटक रंगमंच के अधिक अनुकूल प्रतीत नहीं होता। दृश्यों की संख्या अधिक होने के साथ-साथ पात्रों की संख्या भी काफी अधिक है। अभिनय को सफल बनाने में एक बड़ी बाधा के रूप में यह बिन्दु सामने आता है। प्रस्तुत नाटक में रंगमंचीय प्रस्तुतीकरण की तकनीक को ध्यान में नहीं रखा गया है। युद्ध, सैनिक, हाथी-घोड़े आदि का मंचन सम्भव नहीं है या फिर मंचन में कठिनाइयाँ अधिक हैं। भाषा की दृष्टि से भी यह अभिनेयता या रंगमंचीयता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। इस तरह, कहा जा सकता है कि अभिनेयता या रंगमंचीयता की दृष्टि से यह एक सफल नाटक नहीं है, लेकिन पाठ्य-नाट्य की दृष्टि से ‘राजमुकुट’ एक सफल नाटक है।

प्रश्न 11. ‘राजमुकुट’ नाटक में व्यक्त देशभक्ति पर प्रकाश डालिए।

अथवा ‘राजमुकुट’ नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।

अथवा ‘राजमुकुट’ नाटक में व्यक्त देशप्रेम एवं स्वाधीनता की भावना पर प्रकाश डालिए।

उत्तर ‘राजमुकुट’ नाटक के नाटककार का उद्देश्य ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित मार्मिक, सजीव. सशक्त तथा प्रभावोत्पादक अंशों एवं प्रसंगों का वर्णन करके भारत के। लोगों में देशप्रेम की भावना को जागृत करना है। प्रस्तुत नाटक के उददेश्य या सन्देश को निम्न बिन्दुओं के रूप में देख सकते हैं

(i) स्वाधीनता, देशप्रेम एवं एकता का सन्देश ‘राजमुकुट’ नाटक के
लेखक ने राष्टीय एकता का सन्देश देते हुए यह दर्शाया है कि
महाराणा प्रताप अन्तिम समय तक अपने राष्ट्र की एकता के लिए
संघर्ष करते रहे। वे मृत्यु के समय भी अपने वीर साथियों एवं
सम्बन्धियों को मातृभूमि की रक्षा का सन्देश देते हैं।

(ii) साम्प्रदायिक सद्भाव लेखक व्यथित हृदय जी ने हिन्दू-मुस्लिम
एकता की भावना का प्रसार करने के लिए साम्प्रदायिकता पर
कुठाराघात किया है। महाराणा एवं अकबर का मिलन साम्प्रदायिक
समन्वय की भावना को प्रदर्शित करता है।

(iii) जनता की सर्वोच्चता इस नाटक के माध्यम से लेखक यह सन्देश देना चाहता है कि सत्ता की वास्तविक शक्ति शासित होने वाली जनता में ही निहित है। जनसामान्य का दमन एवं शोषण करके कोई भी शासक चैन से नहीं रह सकता है। राजा या शासक प्रजा या जनसामान्य के केवल प्रतिनिधि भर हैं। उसे जनता का शोषण करने का कोई अधिकार नहीं है।
इस प्रकार प्रस्तुत नाटक के माध्यम से नाटककार अपने उद्देश्यों को पाठक तक सम्प्रेषित करने में पूर्णत: सफल रहा है। प्रस्तुत नाटक की पात्र-योजना श्रेष्ठ है। इसके नायक महाराणा प्रताप हैं तथा उनके अतिरिक्त अन्य मुख्य पात्रों में शक्तिसिंह, कृष्णजी चन्दावत, जगमल, मानसिंह, अकबर आदि शामिल हैं, जबकि नारी पात्रों में प्रजावती, प्रमिला, गुणवती, चम्पा आदि उल्लेखनीय हैं। प्रस्तुत नाटक के पात्र कहानी के विकास में सहायक हैं। इस
नाटक के पात्रों की मुख्य विशेषता उनका उदात्त स्वभाव है।

पात्र एवं चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 12. ‘राजमुकुट’ नाटक के नायक या प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।

अथवा ‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर महाराजा प्रताप की
चारित्रिक विशेषताएँ उद्घाटित कीजिए।

अथवा ‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर प्रतापसिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।

अथवा ‘राजमुकुट’ नाटक के नायक की चारित्रिक विशेषताओं का
उल्लेख कीजिए।

अथवा ‘राजमुकुट’ नाटक के प्रमुख पुरुष पात्र की चारित्रिक
विशेषताएँ बताइए।

अथवा ‘राजमुकुट’ नाटक में जिस पात्र ने आपको सबसे अधिक
प्रभावित किया हो, उसके व्यक्तित्व का परिचय दीजिए।

उत्तर महाराणा प्रताप के चारित्रिक गुणों को निम्नलिखित बिन्दुओं के रूप में देखा जा सकता है

(i) आदर्श भारतीय महाराणा प्रताप आदर्श भारतीय नायक के रूप में प्रस्तुत हुए हैं। उनके विशिष्ट एवं उत्कृष्ट गुणों के कारण मेवाड़ की जनता उन्हें एक जनप्रिय शासक मानती है। उच्च गणों एवं मानवीय भावनाओं से सम्पन्न महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व अनुकरणीय है।

(ii) दृढ़प्रतिज्ञ एवं कर्त्तव्यनिष्ठ राणा प्रताप दढनिश्चयी एवं अपने कर्तव्य के प्रति अत्यधिक निष्ठावान हैं। वे अपने कर्तव्यों का पालन प्रत्येक परिस्थिति में करते हैं।

(iii) स्वतन्त्रता-प्रेमी महाराणा प्रताप जीवनपर्यन्त देश की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करते रहे। दर-दर की ठोकरें खाने को विवश होने के।
बावजूद उन्होंने विदेशी मुगल शासकों की अधीनता स्वीकार नहीं की।

(iv) आन के रक्षक राणा प्रताप एक सच्चे क्षत्रिय थे, जिन्होंने अपनी आन, मान एवं शान के आगे प्रत्येक चीज को तुच्छ समझा। इसी आन ने उन्हें अकबर से सन्धि नहीं करने दी और उनके इस गुण की प्रशंसा अकबर ने भी की।

पराक्रमी योद्धा राणा प्रताप वीर हैं। हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध उनके । शौर्य की गाथा गाते नहीं थकता। वह साक्षी है महाराणा प्रताप के पराक्रम का.. उनकी युद्ध कुशलता एवं वीरता का।

(vi) भारतीय संस्कृति के रक्षक महाराणा प्रताप भारतीय संस्कृति के सच्चे रक्षक हैं, उसके पोषक हैं। अतिथि सत्कार की भारतीय परम्परा को वे अपने जीवन की विकट विषम परिस्थितियों में भी नहीं भूलते हैं। संन्यासी के रूप में अकबर के पहुंचने पर, वे उसके सम्मुख कुछ प्रस्तुत नहीं कर पाने से दुःखी हैं, क्योंकि उनके पास केवल घास की रोटियाँ उपलब्ध हैं।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि धैर्य, वीरता एवं शौर्य के प्रतीक, स्वतन्त्रता के परम उपासक, अद्वितीय कष्टसहिष्ण एवं श्रेष्ठ आचरण वाले महाराणा प्रताप एक आदर्श भारतीय नायक थे।

प्रश्न 13. राजमुकुट’ के आधार पर शक्तिसिंह की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर नाटककार श्री व्यथित हृदय द्वारा लिखित नाटक ‘राजमुकुट’ के नायक मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप का छोटा भाई शक्तिसिंह नाटक के प्रमुख पात्रों में शामिल है। शक्तिसिंह की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं |

(i) देश-प्रेमी एवं मानवीयता का रक्षक महाराणा प्रताप के अनुज शक्तिसिंह को नाटक के अन्तर्गत मानवता के रक्षक, देश-प्रेमी एवं त्याग की प्रतिमा के रूप में चित्रित किया गया है। वह राज्याधिकार के लिए अपने ही बन्धुओं का रक्तपात करने के लिए तैयार नहीं है, अपितु वह जगमल की क्रूरता से एक भिखारिन को भी बचाता है।

(ii) राज्य-वैभव या सत्ता के प्रति अनासक्त शक्तिसिंह का चरित्र त्याग भावना से परिपूर्ण है। वह सत्ता के लिए अपने भाइयों से संघर्ष नहीं करता और युद्ध में अपने भाई महाराणा प्रताप को दो मुगल सैनिकों से भी बचाता है। उसे। गद्दी पर बैठने में कोई आसक्ति नहीं है।

(ii) निर्भीक एवं स्पष्ट वक्ता वह बेलाग एवं निर्भीक वक्ता है और जो उसे उचित लगता है, वही बोलता एवं करता है। वह अकबर की सेना में सम्मिलित होने के बावजूद मेवाड़ के खिलाफ अकबर का साथ नहीं देता।

(iv) भ्रातृ-प्रेमी शक्तिसिंह का भातृ-प्रेम उसके चरित्र को गौरवान्वित करने वाला है। महाराणा प्रताप पर घात लगाए हुए दो मुगल सैनिकों को शक्तिसिंह ने अपने एक ही वार में मौत के घाट उतार दिया। शक्तिसिंह ने अपने बड़े भाई महाराणा प्रताप से क्षमा याचना भी की तथा उनके प्राणों की रक्षा के लिए उन्हें अपना घोड़ा भी सौंप दिया।

(v) राष्ट्रीय एकता एवं साम्प्रदायिक सद्भावना का पोषक शक्तिसिंह का दृष्टिकोण राष्ट्रीय अखण्डता को मूलमन्त्र मानकर चलने वाला है तथा वह हिन्दू-मुस्लिम एकता का भी घोर समर्थक है। वह मुगल शासकों को भारत देश का ही अभिन्न अंग मानता है और उसे विश्वास है कि ये सभी एक दिन भारतमाता की जय बोलेंगे।

(vi) अन्तर्द्वन्द्व से पीड़ित शक्तिसिंह आन्तरिक स्तर पर घोर अन्तर्द्वन्द्व से जूझ रहा है। उज्ज्वल चरित्र का शक्तिसिंह प्रतिशोध की भावना और देशभक्ति के द्वन्द्व से घिर जाता है, लेकिन जीत अन्तत: देशभक्ति की ही होती है। कुछ मानवीय दुर्बलताओं ने अपनी उपस्थिति से शक्तिसिंह के चरित्र को यथार्थ का स्पर्श
दिया है, जिससे उसका चरित्र और अधिक निखर गया है।

प्रश्न 14. राजमुकुट’ नाटक के आधार पर अकबर का चरित्र-चित्रण कीजिए।

उत्तर ‘राजमुकुट’ नाटक में अकबर एक कुशल कूटनीतिज्ञ, मानवतावादी एवं साम्प्रदायिक समन्वयकर्ता के रूप में दृष्टिगोचर होता है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) कुशल राजनीतिज्ञ अकबर कशल शासक है। उसके पास विशाल सेना है।। विदेशी होते हुए भी वह भारतीयों पर अपना प्रभाव छोड़ता है और उन्हें अपने पक्ष में कर लेता है। उसने राजपूत घरानों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करके अपनी शक्ति का विस्तार किया, जिससे उसे कई राजपत शासकों का समर्थन
प्राप्त हुआ। मानसिंह की बुआ जोधाबाई उसकी पटरानी है, इस कारण उसे मानसिंह का भी समर्थन मिल जाता है और उसके प्रति राजपूतों का विरोध कम होता है। उसने जैसलमेर और जोधपुर की राजकुमारियों से भी विवाह किए।

(ii) धार्मिक सहिष्णुता का परिचय अकबर ने इस्लाम धर्म का स्वरूप बदलकर एक ऐसा धर्म प्रचलित किया, जो अत्यन्त उदार एवं समान व्यवहार पर आधारित था। उसके द्वारा प्रचलित ‘दीन-ए-इलाही’ धर्म सर्वधर्म समन्वय की भावना पर आधारित था। उसने हिन्दू और मुसलमानों को एक-दूसरे के निकट लाने का प्रयास किया। धर्म के आधार पर वह किसी प्रकार का भेदभाव नहीं
करता था, इसी कारण उसने हिन्दुओं पर लगे तीर्थयात्रा कर और जजिया-कर को हटा दिया था।

(iii) भारत के प्रति प्रेम अकबर ने स्वयं को भारतीय संस्कृति, परम्पराओं और रीति-रिवाज़ में रंग लिया। वह भारत के सांस्कृतिक वातावरण में पूर्ण रूप से घुल-मिल गया। उसे भारत व उसकी संस्कृति से हार्दिक प्रेम है। ‘राजमकट नाटक के माध्यम से नाटककार तथाकथित कर्णधारों और अल्पसंख्यक नेताओं
को अपना सन्देश देना चाहता है। भारत के प्रति अकबर के प्रेमभाव को दिखाना ही इस नाटक की विलक्षणता है। वह महाराणा प्रताप के अतिथि-प्रेम. देश-भक्ति और स्वाधीनता प्रेम पर मुग्ध हो जाता है, वह महाराणा प्रताप की। प्रशंसा करते हैं और उनके समक्ष कहते हैं-“आज से महाराणा, भारत माँ मेरी माँ है और इस देश के निवासी मेरे भाई हैं। हम सब भाई-भाई हैं महाराणा। हम सब एक हैं।” इस प्रकार नाटक में अकबर आदर्श शासक एवं मानवतावादी भावनाओं से ओतप्रोत हैं। उनका चरित्र अत्यन्त प्रेरणास्पद एवं अनुकरणीय है।।

प्रश्न 15.”राष्ट्रनायक चन्दावत राजमुकुट नाटक का एक प्रभावशाली चरित्र है।” इस कथन के आलोक में ‘चन्दावत’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

उत्तर ‘राजमुकुट’ नाटक के नाटककार श्री व्यथित हृदय ने नाटक में एक ऐसे पात्र का भी वर्णन किया है, जो राष्ट्रनायक है और राष्ट्र के प्रति अपने कर्त्तव्य को भलीभांति जानता है तथा उसका पालन भी करता है। चन्दावत की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) मर्यादापालक श्री व्यथित हृदय ने ‘राजमुकुट’ नाटक में ‘चन्दावत’ को राष्ट्रनायक के रूप में प्रस्तुत किया है। वह मर्यादाओं के पालन में आस्था रखने वाला पुरुष है। जब राजा जगमल सुरा-सुन्दरी के फेर में राज्यकार्य को भूल जाते हैं, तब चन्दावत बड़ा दुःखी होता है। इसलिए वे राजा जगमल को फटकारते हुए कहते हैं कि अब तुम राजमुकुट की मर्यादाओं का पालन करने में असमर्थ हो गए हो। अत: राजमुकुट किसी उचित उत्तराधिकारी को सौंप दो।

(ii) परम देशभक्त चन्दावत परम देशभक्त है। देशभक्ति की भावना उसमें कूट-कूट कर भरी हुई है। वह देश के प्रति अपने कर्त्तव्य को भलीभाँति जानता है और निष्ठापूर्वक उसका पालन भी करता है। युद्ध में राणा के प्राणों की रक्षा करने के लिए वह उनका मुकुट स्वयं धारण कर लेता है और अपने प्राणों को न्योछावर कर देता है। उसने ऐसा करके देशभक्ति का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत किया है।

(iii) महान् त्यागी ‘राजमुकुट’ नाटक का पात्र चन्दावत महान् त्यागी है। वह त्याग की भावना से ओत-प्रोत है। वह युद्ध के मैदान में देशभक्त राणा के प्राणों की रक्षा करने के लिए उनका राजमुकुट स्वयं धारण कर लेता है और देश पर अपने प्राण न्योछावर कर देता है।

(iv) दूरदर्शी राजमुकुट’ नाटक का पात्र चन्दावत दूरदर्शी है, जब राजा जगमल सरा और सुन्दरी के चक्कर में राजकार्य की अनदेखी करता है तो जनता । उसका विरोध करती है, तो वह जगमल से उचित उत्तराधिकारी चुनकर राजमुकुट उसे सौंपने को कह देता है और स्वयं राजा को मुकुट पहनाता है, जिससे जनता प्रसन्न हो जाती है।
उपरोक्त बिन्दुओं को दष्टिगत रखते हुए हम कह सकते हैं कि राजमुकुट का पात्र चन्दावत मर्यादापालक परमदेशभक्त, महान त्यागी और दूरदर्शी था।

Leave a Comment

Your email address will not be published.

Share via
Copy link
Powered by Social Snap