NCERT Solutions for Class 12 Sahityik Hindi Khandakavya Chapter 5 Notes in Hindi एनसीईआरटी सॉल्यूशंस कक्षा 12 साहित्यिक हिंदी खण्डकाव्य अध्याय 5 त्यागपथी के नोट्स हिंदी में
कक्षा 12 साहित्यिक हिंदी खण्डकाव्य अध्याय 5 त्यागपथी हिंदी में
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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य अध्याय 5 त्यागपथी हिंदी में
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UP Board त्यागपथी – रामेश्वर शुक्ल अंचल
Board | UP Board |
Text book | NCERT |
Subject | Sahityik Hindi |
Class | 12th |
हिन्दी खण्डकाव्य | त्यागपथी – रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ |
Chapter | 5 |
Categories | Sahityik Hindi Class 12th |
website Name | यूपीबोर्डसॉल्यूशंस.com |
(आगरा, गोरखपुर, गाजीपुर, बरेली, सुल्तानपुर, जालौन, लखीमपुर खीरी, गोण्डा, शाहजहाँपुर, बाराबंकी जिलों के लिए)
प्रश्न-उत्तर
प्रश्न-पत्र में पठित खण्डकाव्य से चरित्र-चित्रण, खण्डकाव्य के तत्त्वों व तथ्यों पर आधारित दो लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएंगे, जिनमें से किसी एक का उत्तर लिखना होगा, इसके लिए 4 अंक निर्धारित हैं।
कथावस्तु पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1. ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में वर्णित किसी प्रेरणास्पद घटना का उल्लेख कीजिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का क्रमबद्ध वर्णन कीजिए।
उत्तर प्रसिद्ध साहित्यकार रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ द्वारा रचित ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य एक ऐतिहासिक काव्य है, जिसमें छठी शताब्दी के प्रसिद्ध सम्राट हर्षवर्द्धन के त्याग, तप और सात्विकता का वर्णन किया गया है। इस खण्डकाव्य में कवि ने हर्ष की वीरता का वर्णन किया है। साथ ही भारत की राजनीतिक एकता, संघर्ष, हर्ष की वीरता और उनके द्वारा विदेशी आक्रमणकारियों को भारत से भगाने का भी वर्णन किया है। इस खण्डकाव्य की कथावस्तु को कवि ने पाँच सर्गों में विभाजित किया है। इस खण्डकाव्य की सर्गों के अनुसार कथावस्तु संक्षेपत: इस प्रकार है-
प्रथम सर्ग
राजकुमार हर्षवर्धन वन में शिकार खेलने में व्यस्त थे, तभी उन्हें पिता के रोगग्रस्त होने का समाचार मिला। कुमार तुरन्त लौट आए। पिता को रोगमुक्त करने के लिए वे बहुत उपचार करवाते हैं, परन्तु असफल रहते हैं। उनके बड़े भाई राज्यवर्धन उत्तरापथ पर हूणों से युद्ध करने में लगे हुए थे। हर्ष ने दूत भेजकर पिता की अस्वस्थता का समाचार उन तक पहुँचाया। उधर उनकी माता ने अपने पति की अस्वस्थता को बढ़ता हुआ देखकर आत्मदाह करने का निश्चय किया और बहुत समझाने पर भी वे अपने निर्णय पर अडिग रहीं और पति की मृत्यु से पूर्व ही आत्मदाह कर लिया। कुछ समय पश्चात् हर्ष के पिता की भी मृत्यु हो गई। पिता का अन्तिम संस्कार करके हर्ष दु:खी मन से राजमहल लौट आए।
द्वितीय सर्ग
पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर राज्यवर्द्धन भी अपने नगर लौट आए। माता-पिता की मृत्य से व्याकुल होकर उन्होंने वैराग्य लेने का निश्चय किया, परन्तु तभी उन्हें समाचार मिलता है कि मालवराज ने उनकी छोटी बहन राज्यश्री को बन्दी बना लिया है और उसके पति गृहवर्मन को मार से मार्ग में उनकी हत्या करवा देता है।
डाला है। यह सुनकर राज्यवर्द्धन सब कुछ भूलकर मालवराज को परास्त करने चल पड़ते हैं। वह गौड़ नरेश को हरा देते हैं, पर गौड़ नरेश धोखे जब ये सब समाचार हर्षवर्द्धन को ज्ञात होते हैं तो वह विशाल सेना लेकर गौड़ नरेश से युद्ध करने के लिए चल पड़ते हैं, परन्तु तभी सेनापति से उन्हें अपनी बहन के वन में जाने का समाचार मिलता है, जिसे सुनकर वह अपनी बहन को खोजने वन की ओर चल पड़ते हैं। वहाँ एक भिक्षु द्वारा उन्हें राज्यश्री के आत्मदाह करने की बात पता चलती है। शीघ्र ही वहाँ पहुँचकर वह अपनी बहन को ऐसा करने से रोक लेते हैं और कन्नौज लौट आते हैं।
तृतीय सर्ग
इस सर्ग में सम्राट हर्ष की इतिहास प्रसिद्ध दिग्विजय का वर्णन है। छह वर्षों तक निरन्तर युद्ध करते हुए हर्ष ने समस्त उत्तराखण्ड को जीत लिया। उन्होंने कश्मीर. मिथिला, बिहार, गौड़, उत्कल, नेपाल, वल्लभी, सोरठ आदि सभी राज्यों को जीत लिया तथा यवन, हूण आदि विदेशी शत्रुओं का नाश करके देश को शक्तिशाली
एवं सुगठित राज्य बनाया और अनेक वर्षों तक धर्मपूर्वक शासन किया। उनके राज्य में धर्म, संस्कृति और कला की भी पर्याप्त उन्नति हई। उन्होंने कन्नौज को ही अपने विशाल साम्राज्य की राजधानी बनाया।
चतुर्थ सर्ग
इस सर्ग में राज्यश्री. हर्ष और आचार्य दिवाकर के वार्तालाप का वर्णन किया गया है। यद्यपि राज्यश्री अपने भाई के साथ कन्नौज के राज्य की संयुक्त रूप से शासिका थी, परन्तु मन में तथागत की उपासिका थी और वह भिक्षुणी बनना चाहती थी, परन्तु हर्ष इसके लिए तैयार नहीं थे। बाद में आचार्य दिवाकर ने राज्यश्री को मानव कल्याण में लगने का उपदेश दिया। राज्यश्री ने उनके उपदेशों
का पालन किया और वह मानव सेवा में लग गई।
पंचम सर्ग
इस सर्ग में हर्ष के त्यागी और व्रती जीवन का वर्णन किया गया है। हर्ष ने प्रयाग में त्याग-व्रत का महोत्सव मनाने का निश्चय किया। उन्होंने देश के सभी ब्राह्मणों, श्रमणों, भिक्षुओं, धार्मिक व्यक्तियों आदि को प्रयाग में आने के लिए निमन्त्रण दिया और सम्पूर्ण संचित कोष को दान देने की घोषणा की-प्रतिवर्ष माघ के महीने में त्रिवेणी तट पर विशाल मेला लगता था। इस अवसर पर प्रति पाँचवें वर्ष
हर्षवर्द्धन अपना सर्वस्व दान कर देते थे तथा अपनी बहन राज्यश्री से माँगकर वस्त्र धारण करते थे। इस प्रकार वे एक साधारण व्यक्ति के रूप में अपनी राजधानी वापस लौटते थे। इस दान को वे प्रजा-ऋण से मुक्ति का नाम देते थे। ।
इस प्रकार, कर्तव्यपरायण, त्यागी, परोपकारी, परमवीर महाराज हर्षवर्द्धन का शासन सब प्रकार से सुखकर तथा कल्याणकारी सिद्ध होता है। सम्राट हर्षवर्द्धन के माध्यम से कवि ने तत्कालीन श्रेष्ठ शासन का उल्लेख करते हुए भारतीय धर्म, राजनीति, संस्कृति और समाज की उन्नति का उत्कृष्ट वर्णन किया है।
प्रश्न 2. खण्डकाव्य की कसौटी पर ‘त्यागपथी’ का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा खण्डकाव्य की विशेषताओं (तत्त्वों, लक्षणों) के आधार पर
‘त्यागपथी’ का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के काव्य सौष्ठव (काव्य सौन्दर्य/ काव्यशिल्प) को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की भाषा-शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की काव्य-शैली की विवेचना कीजिए|
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के संवाद शिल्प पर प्रकाश डालिए।
उत्तर कविवर रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ द्वारा रचित ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है
कथानक की ऐतिहासिकता
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध सम्राट हर्षवर्द्धन की कथा का वर्णन हुआ है। कवि ने हर्षवर्द्धन के माता-पिता की मत्य. भाई-बहनोई की हत्या. कन्नौज के राज्य संचालन, मालवराज शशांक से युद्ध, हर्ष द्वारा दिग्विजय करके
धर्मशासन की स्थापना तथा प्रत्येक पाँचवें वर्ष तीर्थराज प्रयाग में सर्वस्व दान करने की ऐतिहासिक घटनाओं को अत्यधिक सरल एवं सरस रूप में प्रस्तुत किया है।
खण्डकाव्य की कथावस्तु यद्यपि ऐतिहासिक है, तथापि कवि ने अपनी कल्पनाशक्ति का समन्वय कर इसे अत्यन्त रचनात्मक बना दिया है।
पात्र एवं चरित्र-चित्रण
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में प्रभाकरवर्द्धन तथा उनकी पत्नी यशोमती, उनके दो पुत्र (राज्यवर्द्धन और हर्षवर्द्धन), एक पुत्री (राज्यश्री), कन्नौज, मालव, गौड़ प्रदेश के राज्यों के अतिरिक्त आचार्य दिवाकर, सेनापति आदि अनेक पात्र हैं। खण्डकाव्य के नायक सम्राट हर्षवर्द्धन हैं तथा इस काव्य की नायिका हर्ष की
बहन राज्यश्री है।
कनाकाव्यगत विशेषताएँ
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
भावपक्षीय विशेषताएँ ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की भावपक्ष सम्बन्धी विशेषताएँ निम्नलिखित है
(i) मार्मिकता खण्डकाव्य में अनेक मार्मिक घटनाओं का संयोजन किया गया है। इसमें हर्षवर्द्धन की माता का चितारोहण, राज्यवर्द्धन की वैराग्य हेतु तत्परता, राज्यश्री के विधवा होने पर हर्ष की व्याकुलता, राज्यश्री द्वारा आत्मदाह के समय हर्षवर्द्धन के मिलन का मार्मिक चित्रण हुआ है।
(ii) प्रकृति चित्रण ‘त्यागपथी’ में कवि ने प्रकृति के विभिन्न रूपों का अत्यन्त सन्दर वर्णन किया है। आखेट के समय हर्षवर्द्धन को पिता के रोगग्रस्त होने का समाचार मिलता है, वे तुरन्त राजमहल को लौट आते हैं।
“वन-पशु अविरत, खर-शर-वर्षण से अकुलाए,
फिर गिरि-श्रेणी में खोहों से बाहर आए।”
(iii) रस निरूपण ‘त्यागपथी’ में कवि ने करुण, वीर, रौद्र, शान्त आदि रसों का मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। कुछ उदाहरण निम्न प्रकार हैं-
करुण रस “मुझ मन्द पुण्य को छोड़ न माँ तुम भी जाओ,
छोड़ो विचार यह, मुझे चरण से लिपटाओ।”
वीर रस “कन्नौज-विजय को वाहिनी सत्वर,
गुंजित था चारों ओर युद्ध का ही स्वर।”
कलापक्षीय विशेषताएँ ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की कलागत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) भाषा-शैली खण्डकाव्य की भाषा कथावस्त और चरित नायक के अनुरूप होती है। ‘त्यागपथी’ की भाषा तत्सम शब्दों से परिपूर्ण है। हर्ष के ज्ञान, मानवप्रेम, त्याग, अहिंसा, निष्काम कर्म आदि आदर्शों को प्रस्तुत करने के लिए भाषा की तत्समप्रधानता अनिवार्य थी। वस्तुत: ‘त्यागपथी’ की भाषा सांस्कृतिक आभिजात्य शब्दों से परिपूर्ण है। जैसे-“जन-जन वहाँ था साश्रु, जब वल्कल उन्हीं ने ले लिए।”
(ii) अलंकार योजना ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में उपमा, रूपक एवं उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया गया है-
“थी दीप्त उनकी शीर्ष मणियों में उदय की लालिमा,
पीने चली ज्यों बाल-रवि का तेज उनकी अग्निमा।”
(iii) छन्द योजना सम्पूर्ण खण्डकाव्य छब्बीस मात्राओं के गीतिका छन्द में रचित है। पाँचवें सर्ग के अन्त में घनाक्षरी का प्रयोग हुआ है। यह रचना की समाप्ति का ही सूचक नहीं वरन् वर्णन की दृष्टि से प्रशस्ति का भी सूचक है।।
(iv) संवाद शिल्प ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में कवि ने सरल, मार्मिक एवं प्रवाहपूर्ण संवादों का समावेश करके अपनी काव्य और नाट्य कुशलता का परिचय दिया है। अनेक स्थानों पर काव्य नाटिका जैसा आनन्द प्राप्त होता है-
“संवाद यदि कोई मिला हो आपको उसका कहीं…
कृष्ण बताएँ-मैं इसी क्षण खोजने जाऊँ वहीं।”
उद्देश्य प्रस्तुत खण्डकाव्य में हर्षवर्धन के महान् गुणों को भावात्मक
अभिव्यक्ति देकर उनके असाधारण व्यक्तित्व का चित्रण किया गया है। कवि का उददेश्य जन-चेतना में, विशेष रूप से यवा-चेतना में, इन सदगणों के प्रति भावात्मक संवेदना उत्पन्न करना है। ‘त्यागपथी उदात्त गुणों के प्रति मन में भावात्मक संवेगों को उत्पन्न करने में सक्षम खण्डकाव्य है।
चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 3. ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ के नायक का चरित्रांकन कीजिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर हर्षवर्द्धन के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के प्रधान पात्र की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक सम्राट हर्षवर्द्धन के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। ।
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य “महाराज हर्षवर्द्धन की दानवीरता और राष्ट्रीयता का द्योतक है”-इस कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा “हर्षवर्द्धन का चरित्र देशप्रेम का प्रखरतम उदाहरण है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर महाराज हर्षवर्द्धन थानेश्वर के महाराज प्रभाकरवर्द्धन के छोटे पुत्र हैं। वे ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के नायक हैं। सम्पूर्ण कथा का केन्द्र वही हैं। सम्पूर्ण घटनाचक्र उन्हीं के चारों ओर घूमता है। उन्होंने छिन्न-भिन्न भारत को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बाँधने का महान् कार्य किया। उनके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं।
(i) आदर्श पुत्र एवं भाई ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में हर्षवर्द्धन एक आदर्श पत्र एवं आदर्श भाई के रूप में पाठकों के समक्ष उपस्थित होते हैं। जैसे ही पिता के अस्वस्थ होने का समाचार मिलता है, वे शीघ्र ही आखेट से लौट आते हैं।
और यथासम्भव उपचार भी करवाते हैं। पिता के स्वस्थ न होने तथा माता के आत्मदाह करने की बात सुनकर वे अत्यन्त व्याकुल हो उठते हैं। इसी प्रकार बहन राज्यश्री को भी वे अग्निदाह से बचाते हैं। उसे सम्पूर्ण राज्य सौंपकर अपने प्रेम का परिचय देते हैं। बड़े भाई राज्यवर्द्धन के प्रति भी उनके मन में अपार स्नेह है-
“बाहर चले जब राज्यवर्द्धन हर्ष पीछे चल पड़े,
ज्यों वन-गमन में राम के पीछे लक्ष्मण अड़े।”
(ii) दानी एवं दृढ़ निश्चयी हर्षवर्द्धन दानी एवं दृढ़ निश्चयी हैं। उन्होंने
छिन्न-भिन्न भारत को एक करने का दृढ़ निश्चय किया और इसमें सफल भी रहे। भाई की मृत्यु का समाचार सुनकर उन्होंने जो दृढ़ प्रतिज्ञा की थी उसका भी पूर्णतया पालन किया। हर्षवर्द्धन तीर्थराज प्रयाग में प्रत्येक 5 वर्ष पर सम्पूर्ण राजकोष को दान कर देने की घोषणा करते हैं-
“हुई थी घोषणा सम्राट की साम्राज्य-भर में,
करेंगे त्याग सारा कोष ले संकल्प कर में।”
त्रिवेणी संगम पर प्रयाग में प्रति पाँच वर्ष बाद माघ महीने में सर्वस्व त्याग करने का संकल्प लेते हैं। अपने जीवन में वे छह बार इस प्रकार सर्वस्व दान का आयोजन करते हैं।
(iii) महान योद्धा हर्षवर्द्धन महान् योद्धा हैं। उनके पराक्रम के आगे कोई योद्धा टिक नहीं पाता। कोई भी राजा उन्हें पराजित नहीं कर सका। महाराज हर्षवर्द्धन की दिग्विजय, उनका युद्ध कौशल और उनकी वीरता भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उनकी वीरता एवं कुशल शासन का ही परिणाम था कि- “उठा पाया न सिर कोई प्रवंचक।”
(iv) पराक्रमी एवं धैर्यशाली हर्षवर्द्धन अत्यन्त पराक्रमी हैं, साथ ही धैर्यशाली भी हैं। पिता की मृत्यु, माता का आत्मदाह, बहनोई की मृत्यु और अपने प्रिय भाई राज्यवर्द्धन की मृत्यु जैसे महान् संकटों को उन्होंने अकेले ही सहन किया था। संकट की इस घड़ी में भी उन्होंने कभी अपना धैर्य नहीं छोड़ा-
“क्रन्दन करती थी प्रजा, शान्त थे हर्ष धीर।”
(v) योग्य एवं कुशल शासक पिता और भाई की मृत्यु के पश्चात हर्षवर्द्धन राजा बने। उनका शासन सुख, शान्ति और समृद्धि से परिपूर्ण था। उनके राज्य में प्रजा सब प्रकार से सुखी थी, विद्वानों की पूजा की जाती थी। सभी
प्रजाजन आचरणवान, धर्मपालक, स्वतन्त्र एवं सुरुचिसम्पन्न थे। वे सदैव जनकल्याण एवं शास्त्र चिन्तन में लगे रहते थे। वे स्वयं को प्रजा का सेवक समझते थे। उनका मत था कि-
“नहीं अधिकार नृप को पास रखे धन प्रजा का,
करे केवल सुरक्षा देश-गौरव की ध्वजा का।”
इस प्रकार हर्ष का चरित्र एक वीर योद्धा, आदर्श पुत्र, आदर्श भाई और महान् त्यागी शासक का चरित्र है। वह अपने कर्तव्यों के प्रति अत्यधिक सजग हैं। उनका यही गुण आज के भटके हुए युवाओं को प्रेरणा दे सकता है।
प्रश्न 4. ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर किसी स्त्री पात्र का चरित्रांकन कीजिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ में वर्णित घटनाओं के आधार पर प्रमुख पात्र राज्यश्री का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ में निरूपित राज्यश्री की चारित्रिक छवि पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
अथवा ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की प्रमुख नारी पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर कविवर रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ द्वारा रचित ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की प्रमुख स्त्री पात्र राज्यश्री है। वह ममता की मूर्ति, माता-पिता की प्रिय पुत्री, कन्नौज की साम्राज्ञी और बुद्ध की अनन्य उपासिका है। वह महाराज प्रभाकरवर्द्धन की पुत्री एवं सम्राट हर्षवर्द्धन की छोटी बहन है। विवाह के कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो जाती है और उसे वैधव्य जीवन बिताना पड़ता है। इसके बाद वह अपना सम्पूर्ण जीवन लोक कल्याण हेतु व्यतीत करती है। राज्यश्री के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) आदर्श नारी राज्यश्री आदर्श पुत्री, आदर्श बहन और आदर्श पत्नी के रूप में हमारे समक्ष आती है। माता-पिता की यह लाडली बेटी यौवनावस्था में ही जब विधवा हो जाती है, तो बन्दी बना ली जाती है। जब वह भाई राज्यवर्द्धन की मृत्यु का समाचार सुनती है, तो कारागार से भाग निकलती है और वन में भटकती हुई आत्मदाह के लिए तत्पर हो जाती है, किन्तु शीघ्र ही वह अपने भाई हर्षवर्द्धन द्वारा बचा ली जाती है। तब वह तन-मन से प्रजा की सेवा में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर देती है।
(ii) धर्मपरायण एवं त्यागमयी राज्यश्री का सम्पूर्ण जीवन त्याग भावना से परिपूर्ण है। भाई हर्षवर्द्धन उससे सिंहासन पर बैठने का आग्रह करते हैं, परन्तु वह राज्य सिंहासन ग्रहण करने से मना कर देती है। वह राज्य-वैभव का परित्याग करके कठोर संयम एवं नियम का मार्ग स्वीकार कर लेती है। माघ-मेले में प्रत्येक पाँचवें वर्ष वह भी अपने भाई की भाँति सर्वस्व दान कर
देती है-“लुटाती थी बहन भी पास का सब तीर्थ-स्थल में।”
(iii) देशभक्त एवं जनसेविका राज्यश्री के मन में देशप्रेम और लोक कल्याण की भावना भरी हुई है। हर्ष के समझाने पर भी वह वैधव्य का दुःख झेलते हुए देशसेवा में लगी रहती है। इसी कारण वह संन्यासिनी बनने के विचार को छोड़ देती है तथा अपना सम्पूर्ण जीवन देशसेवा में बिता देती है।
(iv) सुशिक्षित एवं ज्ञान सम्पन्न राज्यश्री सुशिक्षित है, साथ ही वह शास्त्रों के ज्ञान से भी भली-भाँति परिचित है। आचार्य दिवाकर मित्र संन्यास धर्म का तात्विक विवेचन करते हुए उसे मानव कल्याण के कार्य में लगने का उपदेश देते हैं और इसे वह स्वीकार कर लेती है। वह आचार्य की आज्ञा का पालन करती है।
(v) करुणा की साक्षात् मूर्ति राज्यश्री करुणा की साक्षात् मूर्ति है। उसने माता-पिता की मृत्यु और बड़े भाई की मृत्यु के अनेक दुःख झेले। इन दुःखों की अग्नि में तपकर वह करुणा की मूर्ति बन गई। इस प्रकार राज्यश्री का चरित्र एक आदर्श भारतीय नारी का चरित्र है। राज्यश्री एक आदर्श राजकुमारी थी, जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन पूर्ण सात्विकता और पवित्रता से व्यतीत किया। वह त्यागमयी और करुणामयी थी। इसलिए उसका चरित्र अनुकरणीय है।
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