UP board syllabus विविधा : गिरिजाकुमार माथुर – परिचय : चित्रमय धरती
Board | UP Board |
Text book | NCERT |
Subject | Sahityik Hindi |
Class | 12th |
हिन्दी पद्य- | विविधा गिरिजाकुमार माथुर चित्रमय धरती |
Chapter | 11 |
Categories | Sahityik Hindi Class 12th |
website Name | upboarmaster.com |
संक्षिप्त परिचय
नाम | गिरिजाकुमार माथुर |
जन्म | 1919 ई. में मध्य प्रदेश के अशोक नगर नामक गाँव में |
पिता का नाम | श्री देवी चरण |
शिक्षा | एम. ए., एल. एल. बी. |
कृतियाँ | मंजीर नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, जो बन सका, छाया मत छूना, साक्षी रहे वर्तमान, पृथ्वीकल्प आदि। |
उपलब्धियाँ | प्रयोगवादी कवियों में ख्याति प्राप्त कवि तथा नई काव्यधारा के अग्रदूत माने जाते हैं। यह तार सप्तक के कवि हैं। |
मृत्यु | 1994 ई. |
जीवन परिचय एवं साहित्यक उपलब्धियाँ
प्रयोगशील कवियों में विशिष्ट स्थान रखने वाले गिरिजाकुमार माथुर का जन्म मध्य प्रदेश के अशोक नगर नामक स्थान पर 1919 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री देवी चरण था। लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. तथा एल.एल.बी. करने के बाद कई जगह नौकरी करते हुए अन्त में 1963 ई. में आकाशवाणी लखनऊ में उप-निदेशक के रूप में इनकी पुन: नियुक्ति हुई। इन्होंने साहित्य सृजन के साथ ‘गगनांचल’ नामक पत्रिका का सम्पादन भी किया। 1994 ई. में भौतिक संसार को छोड़कर सदा के लिए प्रस्थान कर गए।
साहित्यिक गतिविधियाँ
गिरिजाकुमार माथुर प्रयोगवादी कवियों में अपना विशेष स्थान रखते हैं। यह तारसप्तक के कवि हैं। इनके काव्य में प्रयोग तथा समन्वय का सुन्दर सामंजस्य दिखाई देता है। ये रोमाण्टिक अनुभूति सम्पन्न प्रणय-भाव और सौन्दर्य के प्रति नवीन दृष्टि को अभिव्यक्ति देने के लिए सुप्रसिद्ध हैं। इन्होंने आधुनिक जीवन की कुण्ठाओं के साथ-साथ सामाजिक उत्तरदायित्वों को भी अपने काव्य में स्थान दिया है। कविता के अतिरिक्त, इन्होंने एकांकी नाटक आलोचना आदि भी लिखी हैं।
कृतियाँ
प्रमुख काव्य-संकलन मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, जो बन्ध न सका, छाया मत छूना, साक्षी रहे वर्तमान, पृथ्वीकल्प आदि हैं।
काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष
- अनुभूतियों एवं संवेदनाओं की सूक्ष्म अभिव्यक्ति इनके काव्य में अनुभूतियों एवं संवेदनाओं की सूक्ष्म अभिव्यक्ति हुई है। इन्होंने विभिन्न अनुभवों को विभिन्न रूपों में व्यक्त किया है।
- 2. पूँजीवादी तथा साम्राज्यवादी भावनाओं का विरोध इन्होंने पूँजीवादी तथा साम्राज्यवादी भावनाओं के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई और समाजवादी भावनाओं की अभिव्यक्ति की है।
- 3. प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन इन्होंने प्रकृति के सौन्दर्य, उसको उदासी, आदि का वर्णन अपने काव्य में किया है। प्रकृति चित्रण का प्राय: उद्दीपनकारी रूप इनके काव्य में मिलता है।
कला पक्ष
- भाषा इनकी भाषा प्रौढ़, प्रांजल तथा परिनिष्ठित खड़ी बोली है। जिसमें संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाओं के साथ-साथ बोलचाल के शब्दों का भी बहुत प्रयोग हुआ है।
- प्रतीक इन्होंने अपने काव्य में विविध प्रकार के
- प्रतीकों; जैसे-परम्परागत, व्यक्तिगत, प्राकृतिक, देशगत, ऐतिहासिक, पौराणिक, सांस्कृतिक आदि का प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया है।
- बिम्ब इनके काव्य में वस्तुपरक, ऐन्द्रिय, आध्यात्मिक तथा भाव बिम्बों का प्रयोग हुआ है। इनकी बिम्ब योजना सुन्दर है।
- अलंकार एवं छन्द इन्होंने प्राचीन अलंकार के साथ नवीन अलंकारों का प्रयोग भी अपने काव्य में किया है। इनके काव्य में विविध छन्दों का प्रयोग हुआ है, परन्तु फिर भी इनका विशेष झकाव मुक्त छन्द की ओर है।। इन्होंने अनेक सुन्दर, छन्दबद्ध तथा तुकबन्दी से परिपूर्ण गीत भी लिखे हैं।
हिन्दी साहित्य में स्थान
गिरिजाकुमार माथुर प्रयोगवादी कवियों में ख्यातिप्राप्त कवि माने जाते है। प्रयोगवादी कवि के रूप में ये इस नई काव्यधारा के अग्रदूत हैं। यह तार सप्तक के सात कवियों में से एक हैं।
पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या
चित्रमय धरती
- ये धूसर, साँवर, मटियाली, काली धरती
फैली है कोसों आसमान के घेरे में
रूखों छाए नालों के हैं तिरछे ढलान
फिर हरे-भरे लम्बे चढ़ाव
झरबेरी, ढाक, कास से पूरित टीलों तक
जिनके पीछे छिप जाती है गढ़बाटों की रेखा गहरी
ये सोंधी घास ढंकी रूंदे हैं धूप बुझी हारें भूरी
सूनी-सूनी उन चरगाहों के पार कहीं
धुंधली छाया बन चली गई है पाँत दूर के पेड़ों की उन ताल
वृक्ष के झौरों के आगे दिखती नीली पहाड़ियों की झाँई ।
जो लटे पसारे हुए जंगलों से मिलकर है एक हुई ।
शब्दार्थ धूसर धूल से भरी हुई, मटमैली; साँवर साँवली, काली;
रूखों-वृक्षों; परितपूर्ण; हारे-वन, जंगल; गढबाटों की रेखा सघन
वनस्पति में जो मार्ग हैं। पाँत-पंक्ति, लाइन; औरों समूहों, झाँई-परछाई।
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘चित्रमय धरती’ शीर्षक कविता, जोकि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित कविता संकलन ‘लैण्डस्कैप : धूप के धान’ से उद्धृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने धरती के सौन्दर्य का चित्रण किया है।
व्याख्या कवि धरती के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि ये धूल से भरी हुई मटमैली, साँवली, काली धरती आसमान के घेरे में बहुत दूर तक फैली हुई है अर्थात यह धरती बहत विशाल है। इस धरती पर कहीं वक्षों से छाए हुए नालों के तिरछे ढलाने हैं, कहीं पर हरे-भरे लम्बे चढ़ाव हैं, तो कहीं पर झबरेली अर्थात जंगली बेर, ढाक (पलाश) और काँस (शरद् ऋतु में फूलने वाली घास) के ऊँचे ढेर हैं, जिनके पीछे सघन वनस्पति के मार्ग की रेखाएँ छिपी हुई हैं।। कवि कहता है कि इस धरती पर कहीं सौंधी (सुगन्धित) घास से भरपूर मैदान हैं, जो दूर-दूर तक धूप से ढंके हुए हैं अर्थात् घास पर धूप फैली हुई है। कहीं पर केवल जंगल ही जंगल दिखाई देते हैं। इन जंगलों में सूने चरागाहों के पार अर्थात् दूसरी ओर पेड़ों की पंक्तियाँ दूर तक लगी हुई हैं, जिनकी धुंधली छाया दूर तक दिखाई दे रही है। इन वृक्षों के समूह के आगे नीली-नीली पहाड़ियों की छाया दिखाई दे रही है। कवि को यह छाया ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे पहाडी रूपी नारी ने अपने केशजाल (बालको फैलाकर सारे जंगल को ढक लिया हो। कहने का तात्पर्य यह है कि धरती के इस दृश्य को दूर से देखने पर पहाड़ियाँ और जंगल दोनों एक ही रूप तथा आकार के दिखाई दे रहे हैं, वे अलग-अलग नहीं लगते। इस प्रकार कवि ने धरती के भव्य रूप का वर्णन किया है।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) कवि ने इस विराट धरती के अब तक देखे-अनदेखे सभी प्रकार के सौन्दर्य का चित्रण किया है। कवि की दृष्टि धूसर, साँवर, मटियाली काली धरती के शोभामय स्वरूपों की ओर भी गई है।
(ii) रस शृंगार
कला पक्ष
भाषा काव्यात्मक खड़ीबोली शैली चित्रात्मक
छन्द मुक्त अलंकार पुनरुक्तिप्रकाश, रूपक एवं मानवीकरण
गुण प्रसाद शब्द शक्ति अभिधा एवं लक्षणा
- 2 यह चित्रमयी धरती फैली है कोसों तक
जिसके वन-पेड़ों के ऊपर नीमों, आमों, वट, पीपल पर
निखरे-निखरे मौसम आते कच्ची मिट्टी के गाँवों पर
भर जाते हैं खेरे और खेत फिर रंग-बिरंगी फसलों से
जिनमें सूरज की धूप दूध बन रम जाती
हर दाने में रच जाता अमरित चन्दा का
इस धूसर, साँवर धरती की सोंधी उसाँस
कच्ची मिट्टी का ठण्डापन मटियाला-सा हलका साया
तन मन में साँसों में छाया जिसकी सुधि आते ही पड़ती
ऐसी ठण्डक इन प्रानों में ज्यों सुबह ओस ।
गीले खेतों से आती है मीठी हरियाली-खुशबू मन्द हवाओं में।
शब्दार्थ निखरे-निखरे रमणीय, सुन्दर; चित्रमयी-चित्रों वाली;
अमरित अमृत; रम जाना लीन हो जाना; साँवर-काली; सुधि-याद।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने धरती तथा प्रकृति के सौन्दर्य का चित्रण किया है।
व्याख्या कवि कहता है कि यह धरती भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्रों वाली है तथा बहुत दूर तक फैली हुई है। इस धरती को कवि ने चित्रमय इसलिए कहा है, क्योंकि विभिन्न ऋतुओं में इसकी भिन्न-भिन्न छवि दिखाई देती है। धरती पर अनेक प्रकार के वृक्ष उगे हुए हैं, जिनमें नीम, आम, बरगद तथा पीपल आदि
शामिल हैं। इन वृक्षों पर रमणीय (सुन्दर) ऋतुएँ आती हैं और अपना प्रभाव छोड़कर चली जाती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक ऋतु से ये वृक्ष प्रभावित होते हैं। गाँव में बने हुए कच्ची मिट्टी के घरों पर भी ये ऋतुएँ अपना रंग बरसा जाती हैं अर्थात् वर्षा ऋतु में गाँव के घर और खेत वर्षा के जल से भर जाते हैं। इसके बाद सूरज की धूप खिलती है और वह रंग-बिरंगी फसलों में दूध बनकर समा जाती है। कहने का तात्पर्य यह है कि धूप फसलों का पोषण करती है, जिससे फसलों में एक प्रकार की चमक आ जाती है। इस प्रकार नई फसल के प्रत्येक दाने में चन्द्रमा का अमृत घुल जाता है। कवि कहता है कि इस धूल में भरी हई मटमैली तथा काली धरती से निकलने वाली सुगन्धित साँसें (खुशबू), कच्ची मिटटी की ठण्डक और मटियाले रंग की छाया मेरे तन और मन को आनन्द से भर देती है।इस मनमोहक वातावरण की याद आते ही मेरे प्राणों (शरीर) में ऐसी शीतलता भर जाती है जैसे की प्रातःकाल में ओस से भीगे हुए खेतों की हरियाली को छूकर ठण्डी-ठण्डी हवाओं से भीनी-भीनी सुगन्ध फैल रही हो। कवि को यह दृश्य अत्यन्त मनमोहक लगता है, इसलिए वह कहता है कि यह सुगन्ध प्रत्येक मनुष्य के शरीर को शीतलता तथा आनन्द प्रदान करने वाली होती है।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) कवि ने धरती के साथ-साथ प्राकृतिक सौन्दर्य का अनुपम चित्रण प्रस्तुत किया है।
(ii) रस शृंगार
कला पक्ष
भाषा काव्यात्मक खड़ीबोली शैली चित्रात्मक
छन्द मुक्त अलंकार उपमा, उत्प्रेक्षा एवं अनुप्रास
गुण प्रसाद शब्द शक्ति लक्षणा