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UP Board Syllabus खून का रिश्ता – कहानी – भीष्म साहनी

BoardUP Board
Text bookNCERT
SubjectSahityik Hindi
Class 12th
हिन्दी कहानी-खून का रिश्ता भीष्म साहनी
Chapter 1
CategoriesSahityik Hindi Class 12th
website Nameupboarmaster.com

पात्र-परिचय

मंगलसेनवीरजी के चाचा
वीरजीआधुनिक भारतीय जागरूक नवयुवक का प्रतिनिधित्व करने वाला
बाबूजीवीरजी के पिताजी
माँजीवीरजी की माँ, जो बहव्यक्तित्ववादी। प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। सन्तूवीरजी के घर का नौकर
मनोरमा वीरजी की बहन
प्रमावीरजी की होने वाली पत्नी

कहानी का सारांश

मानवीय संवेदनाओं के कशल चितेरे भीष्म साहनी की कहानी खन का रिश्ता’ मानवीय संवेदनाओं पर आधारित एक सय
हैं, जो भारतीय पारिवारिक आत्मवाद का प्रतिनिधित्व करती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक दहेज उन्मूलन, मानवता तथा।
‘भाईचारे की आत्मीय भावना को सबढ़ करने का प्रयास करता है। इसके अतिरिक्त लेखक ने सामाजिक सधार की दिशा में प्रभात पहल की है। कहानी में नवीन चेतना व लोक-जागृति का आह्वान होने के साथ-ही-साथ पारम्परिक खन के रिश्तों का भी सौन्दर वर्णन किया गया है। इस कहानी का मूल उददेश्य व्यक्ति के विचार में उदारता, ममत्व और समता का भाव संचारित करना है।। परम्परागत रूप से मान्य खून के रिश्ते आज के समय में किस प्रकार धनहीनता एवं साधन सम्पन्नता से प्रभावित होते हैं. इसे कहानी में । स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है।

मंगलसेन का स्वप्न देखना

आज मंगलसेन ने एक सपना देखा था, परन्तु वह सपना मात्र सपना न होकर सच्चाई थी। वास्तव में, आज के दिन ही वीरजी की सगाई में समधियों के यहाँ जाना था। मंगलसेन स्वप्न में देखता है कि वह समधियों के घर में खाट की पाटी पर बैठा हआ है और हाथों में चिलम थामे है। उसकी पगड़ी पर केसर की छींटे हैं।
और हाथ में दूध का गिलास है। बाबूजी अपने समधियों से उसका परिचय । चचाजाद छोटा भाई (चचेरे भाई) कहकर कराते हैं। समधियों के यहाँ मंगलसेन । का अत्यधिक स्वागत हो रहा है। ये सारी बातें मंगलसेन सपने में सोचता है। जब उसका स्वप्न टूटता है, तो वह वास्तव में सगाई में जाने के लिए लालायित हो उठता है।

मंगलसेन को सगाई में न ले जाने का समाचार मिलना

वीरजी की सगाई के सम्बन्ध में मंगलसेन अत्यन्त खुश है, लेकिन उसी क्षण घर के नौकर सन्त का प्रवेश होता है और वह मंगलसेन के हाथों से चिलम लेते हुए कहता है, “तुम्हें सगाई पर नहीं ले जाएंगे, चाचा।” लेकिन मंगलसेन, सन्तू को कहते हैं कि मुझे नहीं ले जाएंगे, तो क्या तुम्हें ले जाएँगे? सन्तू कहता है कि सगाई में कोई नहीं जाएगा। सगाई डलवाने सिर्फ बाबूजी जाएंगे। इस बात पर मंगलसेन खीझ उठता है और सन्तु, मंगलसेन को जाते-जाते एक बार फिर कहता है-“तुम्हें नहीं ले जाएँगे, चाचा, लगा लो शर्त, दो-दो रुपए की।” मंगलसेन और सन्तू के बीच इस बात के लिए शर्त लग जाती है, परन्तु सन्तू की बातें मंगलसेन को व्याकुल कर देती हैं।

बाबूजी और वीरजी में वैचारिक मतभेद

आधुनिक दृष्टिकोण वाला वीरजी एम.ए. पास नवयुवक है, जो सगाई, ब्याह आदि अवसरों पर धन की बर्बादी एवं किसी भी प्रकार के आडम्बर का विरोधी है, जबकि परम्परागत सोच वाले बाबूजी आडम्बर प्रिय एवं दहेज के समर्थक दिखाई पड़ते हैं। वीरजी अपनी सगाई में किसी तरह के आडम्बर एवं दिखावे के विरुद्ध है। इसलिए वह सवा रुपए में सगाई करने तथा सगाई में केवल बाबूजी के जाने के पक्ष में है, जबकि बाबूजी अपने धनी सम्बन्धियों को सगाई में ले जाने के पक्ष में हैं। वीरजी, बाबूजी की बात का विरोध करते हुए अपनी बात पर अड़े
हुए हैं। इसी के साथ वीरजी, बाबूजी के व्यवहार और सिद्धान्त के अन्तर को दर्शाते हुए कहते हैं कि “क्या आप खुद नहीं कहा करते थे कि ब्याह-शादियों। पर पैसे बर्बाद नहीं करने चाहिए। अब अपने बेटे की सगाई का वक्त आया तो। सिद्धान्त ताक पर रख दिए।” इस प्रकार वह बाबूजी के विचार से सहमत न । होकर अपनी बात पर अडिग रहता है। ये सभी तथ्य बाबूजी और वीरजी के। वैचारिक मतभेद स्पष्ट करते हैं।

मंगलसेन का स्वयं पर नाज करना

मंगलसेन कहानी का ऐसा पात्र है, जिससे कोई भी मज़ाक कर लेता है। मोड़ पर साइकिलवाला दुकानदार भी हमेशा मंगलसेन से मज़ाक करके कहता था, आओ मंगलसेन जी, पेच कस दें!” परन्तु मंगलसेन को अपनी हैसियत पर बड़ा नाज था। मंगलसेन फौज में रह चुका था, इस कारण आज भी वह सिर पर खाकी पगड़ी पहनता है। इसके अतिरिक्त वह शहर के जाने-माने धनवान भाई ।
के घर में रहता है। यही कारण है कि वह स्वयं पर नाज करता है।

बाबूजी का दोहरा व्यक्तित्व

मंगलसेन रसोईघर की ओर प्रवेश करता है, तब वहाँ उसे वीरजी मिलते हैं। वीरजी, मंगलसेन को देखकर नमस्ते! कहते हैं। एक ओर तो बाबूजी इस पर। झिडककर वीरजी से कहते हैं, “उठकर चाचाजी को पालागन (पैर छना) करो। बेटा, तुम्हें इतनी भी अक्ल नहीं है!” इस बात पर वीरजी, मंगलसेन के पैर छूते हैं। वहीं दूसरी ओर वीरजी अपनी जगह से उठकर मंगलसेन (चाचाजी) को
बैठने के लिए आग्रह करते हैं तभी बाबूजी कहते हैं, “दो मिनट खड़ा रहेगा तो मंगलसेन की टाँगें नहीं टूट जाएँगी। यह खुद भी चटाई पकड़ सकता है।” बाबूजी के दोनों कथनों में अन्तर साफ दिखाई देता है। एक ओर तो चाचाजी को सम्मान दिया जाता है, तो दूसरी ओर अपमानित किया जाता है। अत: इन कथनों के आधार पर बाबूजी का दोहरा व्यक्तित्व स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

माँ जी की मंगलसेन के प्रति हमदर्दी

बाबूजी द्वारा मंगलसेन को अपमानित किए जाने पर माँ जी मंगलसेन के प्रति। हमदर्दी व्यक्त करती हई बाबजी से कहती हैं, “नौकरों के सामने तो मंगलसेन के साथ इस तरह रुखाई से नहीं बोलना चाहिए। आखिर है तो खून का रिश्ता, कुछ लिहाज करना चाहिए।” दूसरी ओर मनोरमा भी मंगलसेन पर खूब व्यंग्य
कसती है और घर का नौकर सन्तू भी मंगलसेन की आज्ञा का पालन नहीं। करता। जब मंगलसेन, सन्तू से चटाई लाने के लिए कहता है, तो सन्तू इस बात को मज़ाक में उड़ा देता है। यह देख माँ जी सन्तू को फटकार लगाती हैं और इसके पश्चात् ही सन्तू, मंगलसेन के लिए चटाई लेकर आता है। अत: देखा जा सकता है कि सभी पात्रों का व्यवहार मंगलसेन के प्रति उचित न था, परन्तु माँ जी की हमदर्दी यहाँ देखने को मिलती है।

मंगलसेन के साथ बाबूजी के दुर्व्यवहार से वीरजी का क्रोधित होना

मंगलसेन एक निर्धन बुजुर्ग है, जो बाबूजी के घर में ही रहता है। इसके बदले में। वह घर और बाहर के सैकड़ों काम करता है। जब बाबूजी ने मंगलसेन से पूछा कि आज रामदास के पास गए थे? किराया दिया उसने या नहीं?” इसके उत्तर में। मंगलसेन ने बाबजी से कहा कि “बाबूजी, वह अफीमची कभी घर पर मिलता है।
कभी नहीं, आज घर पर नहीं था।” इस बात पर बाबूजी ने मंगलसेन को थप्पड मारने तक की बात कह डाली। इस बात को सुन पूरे घर में सन्नाटा-सा छा गया। बाबूजी का ऐसा व्यवहार मंगलसेन की गरीबी के कारण ही था, वहीं दूसरी ओर घर का कोई अन्य सदस्य होता तो बाबूजी का व्यवहार इस प्रकार का नहीं होता। यही बातें सोच-सोचकर वीरजी अत्यन्त क्रोधित हो उठे थे।

वीरजी द्वारा मंगलसेन को सगाई में भेजने का निश्चय करना

बाबूजी ने वीरजी को एक बार फिर समझाने का प्रयास किया कि सगाई डालने अकेला आदमी जाएगा तो समधियों को यह बात अच्छी नहीं लगेगी, परन्तु वीर जी पहले की तरह ही अपनी जिद पर टिके रहते हैं और कहते हैं, “मैंने कह दिया, पिताजी, आप अकेले जाइए और सवा रुपए लेकर सगाई डलवा लाइए।” इस बात को सुनते ही बाबूजी स्वयं को पराजित महसूस करने लगते हैं और सिर
पर से पगड़ी उतारकर और सिर आगे झुकाकर वीरजी से कहते हैं, “कुछ तो इन सफेद बालों का ख्याल करो! क्यों हमें रुसवा करता है?” यह देखकर वीरजी सहम जाता है और साहस करके कहता है, “यदि आप अकेले नहीं जाना चाहते तो चाचाजी (मंगलसेन) को साथ ले जाइए।” यह सुनकर सबके होश उड़ जाते हैं। माँ जी कहती हैं, “हाय-हाय बेटा, शुभ-शुभ बोलो! अपने रईस भाइयों को
छोड़कर इस मरदूद को साथ ले जाएँ? सारा शहर थू-थू करेगा!” परन्तु अब वीर जी पर इन बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला था। यह उसका अन्तिम फैसला था। जहाँ एक ओर बाबूजी का क्रोध बढ़ रहा था, वहीं दूसरी ओर माँ जी हार मानते हुए वीरजी के फैसले को स्वीकार कर लेती हैं।

मंगलसेन का स्वप्न साकार होना

माँ जी ने सन्तू को आदेश दिया और कहा कि “जा सन्तू, मंगलसेन को कह, तैयार हो जाए।” मंगलसेन को खबर मिलते ही वह खुशी से झूमने लगा। आज उसका वह स्वप्न पूरा होने जा रहा था, जो उसने भतीजे की सगाई में जाने के लिए देखा था। इस खुशी में उसने कोने में रखी ट्रंकी को खोला और कपड़े बदलने लगा। कपड़े बदलकर जब वह आँगन में आया तो माँ जी ने कहा, “यह सूरत लेकर समधियों के घर जाएगा?” मंगलसेन को सिर पर खाकी पगड़ी, नीचे मैली कमीज के ऊपर खाकी फौजी कोट और नीचे धारीदार पाजामा और मोटे-मोटे काले बूट पहने देख माँ जी रुआंसी हो जाती हैं। माँ जी वीरजी का एक पाजामा और बाबूजी की एक पगड़ी मंगलसेन को पहनने के लिए देती हैं। मंगलसेन इन्हें पहनकर स्वयं को बाबूजी की भाँति समझने लगता है। इसके पश्चात समधियों के घर में। मंगलसेन की वैसी ही आवभगत होती है जैसी उसने स्वप्न में देखी थी। आज। उसका यह स्वप्न सच होता नज़र आ रहा था।

समधीजी द्वारा सगाई देना

सगाई देने के समय बादाम से भरे कितने ही थाल समधीजी द्वारा लाए जाते हैं, किन्तु बाबूजी केवल सवा रुपए लेने की ही बात कहते हैं। अन्त में समधीजी अन्दर से चाँदी का एक थाल लाते हैं, जिसमें चाँदी की तीन कटोरियाँ एवं चाँदी के तीन चम्मच रखे हुए थे। एक कटोरी में केसर, दूसरी में राँगला धागा और तीसरी में चाँदी का रुपया एवं चवन्नी रखी हुई थी। इसके पश्चात् बाबूजी ने समधीजी से कहा, “मैं तो केवल सवा रुपया लेने आया था……” परन्तु वह अन्ततः थाल स्वीकार कर लेते हैं और मन-ही-मन कटोरियों, थाल और चम्मचों का मूल्य आँकने लगते हैं। यह सब देख बाबूजी बहुत अधिक खुश तो नहीं हो सके, परन्तु थोड़ी बहुत खुशी उन्हें अवश्य थी, क्योंकि मात्र सवा रुपए के स्थान पर उन्हें चाँदी की कटोरियाँ, थाल और चम्मच भी मिल गए थे।

वीरजी का प्रभा से मिलने के लिए व्याकुल होना

वीरजी अपने कमरे में लेटे हुए किसी नावेल (उपन्यास) को पढ़ रहे थे; परन्तु उनका मन उसे पढ़ने में नहीं लग रहा था। वह बहुत थके हुए थे, मगर उनका हृदय भावनाओं से बेचैन होने लगा था। वे क्षण-प्रतिक्षण प्रभा के ख्यालों में खो जाते थे। जैसे ही बाबूजी और चाचाजी का प्रवेश हुआ वीरजी भी जंगले पर आ खड़े हुए और नीचे देखने लगते हैं। थाल पर रखे लाल रूमाल को देखते ही उनका मन खुश हो उठा। ससुराल की चीजों से उन्हें गहरा लगाव महसूस होने लगता है तथा सगाई के समान को देखकर उनका मन प्रभा से मिलने के लिए अत्यन्त व्याकुल हो उठता है।

चम्मच गायब होने पर मंगलसेन की तलाशी होना

थाली को अपने कन्धों पर रखकर मंगलसेन घर पहुँचता है। वीरजी की माँ ने रूमाल हटाकर देखा कि चाँदी की कटोरियाँ तो तीन थीं, लेकिन चम्मच दो ही थीं। सभी को आश्चर्य हुआ की तीसरी चम्मच कहाँ गई? चाँदी की एक चम्मच गायब हो जाने पर सभी को सन्देह गरीब मंगलसेन पर ही होता है। मंगलसेन द्वारा बार-बार इनकार करने के बावजूद उसे आँगन में खड़ा कर उपकी तलाशी ली जाती है, तो उसकी जेब में मैला रूमाल, बीड़ियों की गड्डी, और छोटी-सी पेन्सिल के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता। तलाशी लिए जाने। समगलसेन अत्यन्त अपमानित महसस करने लगता है। उसकी साँस फूलने लगी। और वह खड़ा-खड़ा वहीं गिर जाता है। तत्पश्चात् घर के नौकर सन्तू द्वारा उसे ले जाकर छज्जे पर लिटा दिया जाता है।

खून के रिश्तों को अपमानित करना

ढोलक की आवाज सुनकर पड़ोस की महिलाएँ घर में इकट्ठा होने
लगती हैं, तभी वीरजी का साला आकर चाँदी की चम्मच मनोरमा
को देकर चला जाता है। दूसरी ओर सगाई में जाने सम्बन्धी मुद्दे
पर सन्तू ने मंगलसेन से शर्त लगाई थी, जिसे वह हार चुका था।
सन्तू कहता है कि तनख्वाह मिलने पर रकम मंगलसेन को दे देगा। इसी बिन्दु पर कहानी समाप्त हो जाती है, लेकिन खून का रिश्ता तार-तार हो जाता है। मंगलसेन को यह समझ नहीं आता कि सगाई में उसका जाना उसके लिए सम्मान का सूचक था या अपमान का, क्योंकि सगाई में शामिल होने के कारण ही उस पर चोरी का आरोप लगाया गया और अपमानित करके उसकी तलाशी ली गई थी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

निर्देश नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार, कहानी सम्बन्धी प्रश्न के अन्तर्गत पठित कहानी से चरित्र-चित्रण, कहानी के तत्त्व एवं तथ्यों पर आधारित दो प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक प्रश्न का उत्तर देना होगा, इसके लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

1 खून का रिश्ता’ कहानी के आधार पर वीरजी का चरित्रांकन कीजिए।
अथवा ‘
खून का रिश्ता’ के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।

उत्तर भीष्म साहनी द्वारा रचित कहानी ‘खून का रिश्ता’ मानवीय संवेदनाओं पर आधारित एक सशक्त कहानी है। कहानी के मुख्य पात्रों में से एक वीरजी’ आधुनिक भारतीय जागरूक नवयवक का प्रतिनिधित्व करते हैं।
वीरजी के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं।

(i) शिक्षित युवक वीरजी एक आदर्श नवयुवक है, जो सही अर्थों में शिक्षित है। वह नवयुवक घर-परिवार के लगभग सभी सदस्यों का विरोध करता हुआ अकेले दहेज के विरुद्ध आवाज उठाता है तथा सभी को अपना सुसंगत निर्णय मानने के लिए बाध्य करता है। वह रूढियों को तोड़ता हुआ परम्परा और आधुनिकता को समन्वित करता है। उसके कहने पर ही निर्धन चाचा मंगलसेन उसके पिताजी के साथ समधी के घर सगाई लेकर जा पाते हैं। ये सभी गुण एक शिक्षित युवक की निशानी को प्रदर्शित करते हैं। अतः यह कहना सर्वथा उचित होगा कि वीरजी एक शिक्षित युवक है।

(ii) आडम्बर एवं दहेज विरोधी आधुनिक पात्र का परिचय देते हुए वीरजी अपने सगे-सम्बन्धियों का विरोध करते हुए अपने विवाह में किसी भी तरह का आडम्बर या दिखावापन नहीं चाहता, जबकि उसकी माँ और बाबूजी इसके पक्ष में नहीं थे, परन्तु वीरजी के विरोध के सामने किसी की नहीं चली और वह अपने वचन पर कटिबद्ध रहा। अन्त में इसके समक्ष माता-पिता को झुकना पड़ा। वह दहेज के रूप में शगुन का सिर्फ सवा रुपया स्वीकार करता है। वह विवाह में फिजूलखर्ची से भी दूर रहना चाहता है। इन सभी तथ्यों के आधार पर स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है। कि वीरजी आडम्बर एवं दहेज विरोधी युवक है।

(iii) समानता की भावना का पोषक वीरजी एक सहृदय युवक है, जो अपने गरीब चाचा मंगलसेन को भी बराबर का सम्मान दिलवाता है। जब-जब घर में उन्हें कोई अपमानित करता है, तब-तब वीरजी क्रोधित हो उठता है। वह मंगलसेन को अपनों के समान ही प्रेम करता है। उसी की जिद का परिणाम होता है कि पिताजी को उसकी बात मानकर मंगलसेन को
सगाई डालने ले जाने के लिए राज़ी होना पड़ता है। वह धनी रिश्तेदारों की जगह गरीब मंगलसेन को अधिक प्राथमिकता देता है। इसके अतिरिक्त वह लड़की वालों से भी दहेज की माँग नहीं करता। इन सभी तर्कों के आधार पर कहना उचित ही होगा कि वीरजी समानता की भावना का पोषक करने वाला व्यक्ति है।

(iv) खून के रिश्ते का हिमायती एक ओर कहानी के सभी पात्र खून के रिश्ते की अहमियत को ताक पर रखकर धन-दौलत आदि को महत्त्व देते है, वहीं दूसरी ओर इसके विपरीत वीरजी खन के रिश्ते की अहमियत को समझने वाला आधुनिक बौद्धिक युवक है। वह सभी बातों को बौद्धिक एवं तार्किक रूप से परखने के बाद भी परम्परा की उस मर्यादा को नहीं भूलता, जो बड़ों के प्रति छोटों का कर्तव्य है। इसके अतिरिक्त, वह इस भावना एवं संवेदना से भी अच्छी तरह परिचित है कि खून के रिश्ते वाले चाचा मंगलसेन अपने भतीजे की शादी से सम्बन्धित क्या-क्या ख्याल रखते होंगे। यही कारण है कि वह अपनी सगाई में चाचा को भेजने की जिद करता है और सफल होता है। वीरजी की यह विशेषता उनको ‘खुन के रिश्ते का हिमायती’ सिद्ध करती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि वीरजी एक शिक्षित युवक, आडम्बर एवं दहेज विरोधी, समानता की भावना के पोषक होने के साथ-साथ खून के रिश्ते का हिमायती भी है।

2 खून का रिश्ता’ कहानी के आधार पर मंगलसेन की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
‘खून का रिश्ता’ का प्रमुख पात्र कौन है एवं उसका चरित्र-चित्रणकीजिए।

उत्तर‘ खून का रिश्ता’ कहानी का प्रमुख पात्र मंगलसेन है। सम्पर्ण कहानी की कथा मंगलसेन के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। वह पहले फौज में रह चुका। था। वह बाबूजी का चचेरा भाई है, जिसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। वह बाबूजी के साथ उन्हीं के घर में रहता है, जिसके बदले में घर और बाहर के कार्य भी कर देता है।

मंगलसेन की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

(i) अपनत्व की भावना मंगलसेन कहानी का ऐसा पात्र है, जो ‘खून के रिश्ते’ के महत्त्व को समझता है। अन्य पात्रों की तरह वह धन और सम्पत्ति वालों को ही अपना नहीं मानता। यद्यपि वह गरीब है, परन्तु उसमें अपनत्व की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। मंगलसेन बाबूजी का चचेरा भाई है। वीरजी से मंगलसेन का प्रेम अत्यधिक है। वह वीरजी को अपना भतीजा मानता है तथा उसकी सगाई की खबर सुनते ही अत्यन्त प्रसन्न हो उठता है। वह अपने भतीजे की सगाई डालने की कल्पना भी करने लगता है, जबकि घर के अन्य सदस्य मंगलसेन को सगाई में ले जाने के इच्छुक नहीं हैं, क्योंकि वह गरीब है। इसके पश्चात् भी वह बाबूजी को अपना भाई, माँ जी को भाभी, वीरजी और मनोरमा को अपने भतीजा व भतीजी के रूप में स्वीकारता है। इस प्रकार कहा जा सकता है। कि मंगलसेन में अपनत्व की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

(ii) उपेक्षित पात्र मंगलसेन को कहानी के उपेक्षित पात्र के रूप में दिखाया गया है। यद्यपि मंगलसेन और बाबूजी के बीच खून का रिश्ता है, परन्तु गरीब होने के कारण घर का कोई भी सदस्य उन्हें सम्मान नहीं देता है। यहाँ तक कि घर का नौकर सन्तू भी उनके द्वारा दिए गए आदेशों का पालन नहीं करता और उनका मज़ाक उड़ाता है। बाबूजी द्वारा उनका बार-बार अपमान किया जाता है। माँ जी भी उन्हें बहुरूपिया आदि कहकर सम्बोधित करती हैं। मनोरमा को जरा भी एहसास नहीं कि वे चाचाजी हैं, वह सदैव उनका मज़ाक उड़ाती रहती है। मंगलसेन को घर के सभी महत्त्वपूर्ण कामों से दूर रखा जाता है। इन सभी तथ्यों के आधार पर स्पष्टतः कहा जा सकता है कि कहानी में मंगलसेन को उपेक्षित व। तिरस्कृत पात्र के रूप में दर्शाया गया है।

(iii) वाचाल प्रवृत्ति मंगलसेन वाचाल प्रवृत्ति का व्यक्ति है। जब घर के अन्य सदस्य सगाई डालने की बातें कर रहे थे, तभी सीढियों से किसी के ऊपर चढ़ने की आवाज सुनाई पड़ती है। माँ जी कदमों की आवाज से समझ जाती हैं कि यह मंगलसेन ही होगा। इसी बात पर माँ जी कहती हैं, “अभी मंगलसेन से कोई बात नहीं करना। खाना खा लो, फिर बातें होती रहेंगी। “माँ जी का ये कथन मंगलसेन की वाचाल प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है। इसी प्रकार सगाई डालने के समय बाबूजी शान्त बैठे थे और मंगलसेन ने प्रभा के बारे में बहुत कुछ जानने का प्रयास किया। यह सन्दर्भ भी उनकी वाचाल प्रवृत्ति को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त सगाई डालने के पश्चात् जब बाबूजी के साथ मंगलसेन अपने घर आते हैं, तो वह सन्तु को सगाई से सम्बन्धित एक-एक बात बताने लगता है, जबकि बाबूजी शान्त अपने कमरे में आराम कर रहे होते हैं। इन्हीं सभी उदाहरणों के आधार पर कहा जाना चाहिए कि मंगलसेन वाचाल प्रवृत्ति का पात्र है।

(iv) सहनशील व्यक्तित्व मंगलसेन ‘खून का रिश्ता’ कहानी का ऐसा पात्र है, जो बार-बार अपमानों को सहन करता रहता है। कभी बाबूजी द्वारा उसे अपमानित किया जाता है, तो कभी घर का नौकर भी उसे अपमानित करता है, परन्तु वह अपने अपमान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करता। कहानी जब अपने चर्मोत्कर्ष पर होती है, तब घर के सदस्यों द्वारा मंगलसेन की तलाशी ली जाती है, परन्तु तब भी वह विरोध न करके अपनी सहनशीलता का परिचय देता है। बाबजी सदैव उसके साथ नौकरों से भी बुरा व्यवहार करते हैं, परन्तु वह उन्हें कभी उल्टा जवाब नहीं देता। अतः उपरोक्त तर्कों के आधार पर अन्त में यह कहा जाना उचित होगा।
कि मंगलसेन के व्यक्तित्व में अपनत्व की भावना है, परन्तु इसके बाद भी उसके साथ उपेक्षित पात्र की भाँति व्यवहार किया जाता है। इसके। अतिरिक्त वह वाचाल प्रवृत्ति के साथ-साथ सहनशील व्यक्तित्व का भी। प्रतिनिधित्व करने वाला पात्र है।

3 खून का रिश्ता’ कहानी के आधार पर ‘बाबूजी’ के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर बाबूजी ‘खून का रिश्ता’ कहानी के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। वे रूढिवादी। प्रवृत्ति के परिचायक हैं, जो बाह्य आडम्बरों और दिखावे के जीवन को महत्त्व देते हैं। ‘बाबूजी’ के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

(i) दोहरा व्यक्तित्व मंगलसेन रसोईघर की ओर प्रवेश करता है, तब वहाँ उसे वीरजी मिलते हैं। वीरजी मंगलसेन को देखकर नमस्ते! कहते हैं। एक ओर तो बाबूजी इस पर झिड़ककर वीरजी से कहते हैं, “उठकर चाचाजी को पालागन (पैर छूना) करो, बेटा, तुम्हें इतनी भी अक्ल नहीं है।” इस बात पर वीरजी, मंगलसेन के पैर छूते हैं। वहीं दूसरी ओर वीरजी अपनी जगह से उठकर मंगलसेन (चाचाजी) को बैठने के लिए आग्रह करते हैं, तभी बाबूजी कहते हैं कि “दो मिनट खड़ा रहेगा तो मंगलसेन की टाँगें नहीं टूट जाएँगी। यह खुद भी चटाई पकड़ सकता है।” बाबूजी के दोनों कथनों में अन्तर साफ दिखाई देता है। एक ओर तो चाचाजी को सम्मान दिया जाना दिखाई पड़ता है, तो दूसरी ओर अपमानित किया जाता है। अतः इन कथनों के आधार पर बाबूजी का दोहरा व्यक्तित्व स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

(ii) सिद्धान्तहीन व्यक्तित्व ‘बाबूजी’ एक सिद्धान्तहीन व्यक्तित्व के रूप में दिखाई देते हैं। अपने बेटे की सगाई से पूर्व वे कहते थे कि शादी-ब्याह पर पैसे बर्बाद नहीं करने चाहिए, परन्तु आज जब अपने बेटे की सगाई का वक्त आया तो उनके सारे सिद्धान्त बदल गए। अब वे बाह्य आडम्बरों के कारण समाज में दिखावा करने के पक्ष में हो गए हैं, परन्तु अपने पुत्र के विरोध के बाद वे मात्र सवा रुपए में सगाई डलवाने के लिए तैयार हो । गए। जब वे समधियों के घर पहुँचे तब एक बार फिर उनकी सिद्धान्तहीन प्रवृत्ति उजागर हुई। घर के सभी सदस्यों ने मिलकर फैसला किया था। कि सगाई मात्र सवा रुपए में डलवाई जाए परन्त बाबजी चाँदी के बर्तन ।
भी स्वीकार कर चुके थे, उन्होंने एक बार भी इसे लेने से इनकार नहीं। किया था। इस प्रकार देखा जा सकता है कि बाबूजी एक सिद्धान्तहीन व्यक्ति हैं।

(iii) दहेज के समर्थक ‘बाबूजी’ कहानी के ऐसे पात्र हैं, जो दहेज के समर्थक हैं। वे परम्परावादी विचारधाराओं से जुड़े हुए व्यक्ति हैं, जो किसी भी । कुरीति को समाप्त न कर उसे परम्परा का रूप मान लेते हैं। इसी परम्परा का विरोध जब वीरजी द्वारा किया जाता है, तब ‘बाबूजी’ इसे। अपना अपमान समझ बैठते हैं। जब वीरजी द्वारा सवा रुपए में सगाई डलवाने की बात की गई तब बाबूजी क्रोधित हो उठे। अन्त में जब सगाई डलवाकर बाबूजी घर पहुंचे, तब भी वह अत्यन्त दुःख महसूस कर रहे थे, जिसका कारण दहेज न मिलना था। उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है। कि बाबूजी दहेज के समर्थक हैं।

(iv) दुर्बल पर रोब जमाने वाला ‘बाबूजी’ का व्यक्तित्व दुर्बल व्यक्तियों पर रोब जमाने वाला है। बाबूजी के घर में ही उनका चचेरा भाई मंगलसेन भी रहता है। मंगलसेन आर्थिक व शारीरिक रूप से कमजोर है। बाबूजी ने मंगलसेन को अपने घर में रहने के लिए जगह दी है, परन्तु इसके बदले मंगलसेन से घर और बाहर के सभी कामों को करवाया जाता है। बाबूजी द्वारा मंगलसेन को बार-बार अपमानित किया जाता है। इसके जवाब में ‘वीरजी’ बाबूजी से कहते हैं कि मंगलसेन को बार-बार। अपमानित इसलिए किया जाता है, क्योंकि वह गरीब है। इस प्रकार। स्पष्टतः कहा जा सकता है कि ‘बाबूजी’ का धनी लोगों से अपनत्व है, जबकि गरीब या दुर्बल व्यक्तियों पर वे रोब जमाने वाले व्यक्ति हैं। अतः कहा जा सकता है कि बाबूजी में दोहरे व्यक्तित्व के साथ-साथ। सिद्धान्तहीनता का भी समावेश है, जो दहेज का समर्थक तथा दुर्बल । व्यक्ति पर रोब जमाने वाला व्यक्ति है।

4 कहानी के तत्त्वों के आधार पर ‘खून का रिश्ता’ कहानी की समीक्ष कीजिए।

अथवा ‘खून का रिश्ता’ कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

अथवा ‘खून का रिश्ता’ कहानी की विशेषताओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

अथवा ‘खून का रिश्ता’ कहानी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।

उत्तर ‘खून का रिश्ता’ मानवीय संवेदनाओं पर आधारित एक सशक्त कहानी है। यह कहानी भारतीय पारिवारिक आत्मवाद का प्रतिनिधित्व करती है। इस कहानी के माध्यम से दहेज उन्मूलन, मानवता तथा भाईचारे की आत्मीय भावना को सुदृढ़ करने का प्रयास किया गया है। इस कहानी में स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है कि किस प्रकार परम्परागत रूप से मान्य खून के रिश्ते आज के युग में धनहीनता एवं साधन-सम्पन्नता से प्रभावित होते
है। ‘खून का रिश्ता’ कहानी की तात्विक समीक्षा निम्नलिखित है।

(i) कथानक कथावस्तु ‘खून का रिश्ता’ कहानी का कथानक विचारोत्तेजक, प्रभावोत्पादक एवं जीवन के यथार्थ की पृष्ठभूमि से सम्बद्ध है। इस कहानी के माध्यम से परिवार के मुखिया को न्यायोचित निर्णय लेने के लिए विवश होते तथा युवा-वर्ग को वैचारिक स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। कहानी में युवा-वर्ग के पात्र द्वारा नव-चेतना और लोक जागृति का आह्वान किया गया
है। इस प्रकार कहानी का कथानक संक्षिप्त कौतूहलपूर्ण, प्रभावपूर्ण, नवीन, मौलिक तथा आकर्षक है। इसके अतिरिक्त कथानक सफलतम रूप से सुसम्बद्ध, सरल, यथार्थवादी व गतिशील बन गया है। कहानी का आरम्भ,। विकास तथा अन्त प्रभावपूर्ण रूप से स्पष्ट किया गया है। कहानी के कथानक में सजीवता तथा तारतम्यता विद्यमान है। इन सभी तथ्यों के
आधार पर पूर्ण रूप से कहा जा सकता है कि कथानक की दृष्टि से खून का रिश्ता’ एक श्रेष्ठ कहानी है।

(ii) पात्र और चरित्र-चित्रण ‘खून का रिश्ता’ एक प्रकार से चरित्र-प्रधान । कहानी है, जिसमें मानव चरित्र की प्रतिष्ठा ही मुख्य विषय है। कहानी में । पात्रों की संख्या सीमित है। इस कहानी में चार मुख्य पात्र-वीरजी, बाबूजी, माँ जी और मंगलसेन हैं तथा गौण पात्र रूप में प्रभा, मनोरमा तथा सन्तू को स्थान दिया गया है। कहानी के प्रमुख पात्र के रूप में वीरजी की चिन्तन-शैली को आधुनिक भारतीय जागरूक नवयुवक के प्रतिनिधित्व
के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो अपनी भावी जिन्दगी को सँवारने के लिए दहेज रहित विवाह करने का आश्चर्यजनक निर्णय लेता है। वीरजी की माँ एक स्वस्थ एवं सन्तुष्ट गृहिणी की भूमिका में हैं, जिनका चरित्र परिस्थितियों के साथ-साथ विकास पाता है। वह कभी खून के रिश्ते की। गरिमा को पहचानती एवं महत्त्व देती हैं, तो कभी उसकी उपेक्षा भी करती हैं। प्रस्तुत कहानी में चरित्र की सूक्ष्मता एवं चारित्रिक भंगिमाओं का वैविध्य या विविधतापूर्ण चित्रण दर्शनीय है। लेखक ने कहानी के पात्रों का चरित्र-चित्रण स्वाभाविकता तथा सजीवता के साथ करते हुए पात्रों को
जीवन्त बना डाला है। अत: पात्र और चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह एक सफल कहानी सिद्ध होती है।

(iii) कथोपकथन/संवाद प्रस्तुत कहानी के संवाद पूर्ण नियन्त्रित तथा कौतूहल को उजागर करने वाले हैं। कथाकार ने इस कहानी में मुहावरों का प्रयोग करके संवादों को उत्कृष्ट बनाया है। इस कहानी के संवाद संक्षिप्त और प्रभावपूर्ण हैं। इसके साथ ही संवाद सबल, चुटीले, स्वाभाविक, सजीव वातावरण के अनुरूप व पात्रानुकूल हैं, जो पात्रों के चरित्र को उजागर करने में सक्षम हैं; जैसे वीर जी का यह संवाद “मैंने कह दिया. माँ! मेरी सगाई सवा रुपए में होगी और केवल बाबूजी। सगाई डलवाने जाएँगे। जो मंजूर नहीं हो तो अभी से……..” यह कथन उनकी विद्रोही प्रवृत्ति को उजागर करता है। इस प्रकार लेखक ने संवादों की बड़ी सटीक और प्रभावशाली योजना की है। अतः कहा जा सकता है कि यह कहानी कथोपकथन (संवाद) की दृष्टि से सफल व श्रेष्ठ कहानी है।

(iv) भाषा-शैली भीष्म साहनी ने ‘खून का रिश्ता’ कहानी को सरल एवं ।। बोधगम्य भाषा द्वारा प्रभावशाली बनाया है। सक्ष्म मानवीय सम्बन्धों को उजागर करने के लिए भाषा की सांकेतिकता से उसकी व्यंजना शक्ति बढ़ाई गई है। भाषा को सशक्त और प्रभावशाली बनाने हेतु महावरों का प्रयोग किया गया है। इस कहानी में शब्दों का चयन क्रियाओं के वेग और अन्तर्द्वन्द्व के विचार से किया गया है। इसमें अंग्रेजी और उर्दू शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। कहानी में व्यंग्यात्मक, चित्रात्मक, वर्णनात्मक व नाटकीय शैली का प्रयोग बड़ी सहजता के साथ किया गया है। इस कहानी में बाबूजी की शैली अधिकांश स्थानों पर ओजपूर्ण है। नौकर सन्तू की शैली मंगलसेन के प्रति व्यंग्य-प्रधान है। इस प्रकार कहना अनुचित नहीं होगा की भाषा-शैली की दृष्टि से ‘खून का रिश्ता’ कहानी सफल सिद्ध होती है।

(v) देशकाल और वातावरण ‘खून का रिश्ता’ कहानी में देशकाल और वातावरण में आंचलिक और स्थानीय रंग दिखता है। लेखक ने कहानी की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए ही देशकाल और वातावरण की सृष्टि की है। कहानी का प्रारम्भिक दृश्य मंगलसेन के स्वप्न से सम्बन्धित है। उसके माध्यम से कहानीकार ने देशकाल को जीवन्त बना दिया है। कहानी में चित्रित बिखरते रिश्तों के माध्यम से समाज के वर्तमान वातावरण को यथार्थ रूप में प्रदर्शित किया गया है। करुणा, आश्चर्य, प्रेम, वात्सल्य आदि की सरसता वातावरण के प्रभाव से जीवन्त हो उठी है। इन तथ्यों के आधार पर यह कहानी देशकाल और वातावरण की दृष्टि से श्रेष्ठ मानी जाएगी।

(vi) उददेश्य प्रत्येक कहानी के मूल में एक केन्द्रीय भाव होता है, जो कहानी को मौलिक आधार प्रदान करता है। यही कहानी का उद्देश्य कहलाता है। साहनी जी ने ‘खून का रिश्ता’ कहानी के माध्यम से दहेज उन्मूलन करने, मानवता तथा भाईचारे की भावना को सदद करने आदि पर बल दिया है। व्यक्ति की वैचारिकता में उदारता, ममत्व और समता भाव संचारित करना कहानी का मूल उद्देश्य है। अतः उददेश्य। की दृष्टि से यह एक सफल कहानी है।

(vii) शीर्षक इस कहानी का शीर्षक कथानुसार सटीक व संगत है। यह शीर्षक कहानी के भाव, विचार, उद्देश्य व कथावस्तु की दृष्टि से पूर्णतः सार्थक व तर्कसंगत है। सम्पूर्ण कथा शीर्षक के इर्द-गिर्द घूमती है। इस कहानी के शीर्षक में व्यापकता, प्रतीकात्मकता का गुण भी विद्यमान है। इसी के साथ इस कहानी का शीर्षक सरल, आकर्षक, मौलिक, नवीन व कौतूहलपूर्ण बन जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि शीर्षक की दृष्टि से यह कहानी सार्थक सिद्ध होती है।

5.’खून का रिश्ता’ कहानी का उददेश्य/सन्देश अपने शब्दों में
लिखिए।

उत्तर ‘खून का रिश्ता’ वर्तमान समाज में टूटते रिश्तों की वास्तविकता को उजागर करने वाली कहानी है। लेखक ने इस कहानी में मनुष्य से सम्बद्ध सूक्ष्म स्थितियों को कलात्मक तौर से चित्रित कर समाज के सम्मुख प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने ‘खून के रिश्ते’ के यथार्थ को उजागर तो किया ही है। साथ-ही-साथ उन रिश्तों पर व्यंग्य भी किया है, जो मानवीयता को छोड़कर धन, अर्थ आदि लोभ के कारण अन्य लोगों से सम्बन्ध स्थापित करते हैं।
‘खून का रिश्ता’ कहानी भारतीय पारिवारिक आत्मवाद का प्रतिनिधित्व करती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक दहेज उन्मूलन, मानवता तथा भाईचारे की आत्मीय भावना को सुदृढ़ करने का प्रयास करता है। इसके अतिरिक्त लेखक ने इसके माध्यम से सामाजिक सुधार की दिशा । में अभूतपूर्व पहल की है। कहानी में नवीन चेतना व लोक-जागृति का । आह्वान होने के साथ-ही-साथ पारम्परिक खून के रिश्तों का भी सौन्दर्यपूर्ण वर्णन किया गया है। इस कहानी का मूल उद्देश्य व्यक्ति के विचार में उदारता, ममत्व और समता भाव संचारित करना है।

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