UP Board syllabus विविधा – नरेन्द्र शर्मा – परिचय – मधु की एक बूंद |
Board | UP Board |
Text book | NCERT |
Subject | Sahityik Hindi |
Class | 12th |
हिन्दी पद्य- | विविधा नरेन्द्र शर्मा – मधु की एक बूंद |
Chapter | 11 |
Categories | Sahityik Hindi Class 12th |
website Name | upboarmaster.com |
संक्षिप्त परिचय
नाम | नरेन्द्र शर्मा |
जन्म | 1913 ई. में बुलन्दशहर जिले के जहाँगीरपुर नामक गाँव। |
पिता का नाम | श्री पूरनलाल शर्मा |
माता का नाम | श्रीमती गंगा देवी |
शिक्षा | प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव में ही तथा प्रयाग विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा उत्तीण की। |
कृतियाँ | काव्य-संग्रह शूल-फूल, कर्ण फूल, प्रवासी के गीत, पलाशवन, मिट्टी और फूल, रक्त चन्दन, प्रभात फेरी, प्यासा निर्झर आदि। खण्ड काव्य द्रौपदी, उत्तरजय, सुवर्णा। |
उपलब्धियाँ | पत्रकार के रूप में साहित्यिक जीवन प्रारम्भ किया, ‘अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी’ के कार्यालय में कार्यरत रहे। फिल्मों में गीत एवं संवाद लेखन का कार्य किया, ऑल इण्डिया में कार्यक्रम नियोजक रहे। |
साहित्य में स्थान | एक उत्कृष्ट गीतकार के रूप में नरेन्द्र शर्मा का हिन्दी साहित्य में विशिष्ट स्थान है। |
मृत्यु | 1989 ई. |
जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
छायावादोत्तर काल में अपने प्रणय-गीतों, सामाजिक भावना एवं क्रान्तिवादी कविताओं से जनमत को गहराई से प्रभावित करने वाले कवियों में अग्रण्य नरेन्द्र शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले के जहाँगीरपुर नामक गाँव में 28 फरवरी, 1913 में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री पूरनलाल शर्मा तथा माता का नाम श्रीमती गंगा देवी था। नरेन्द्र शर्मा चार वर्ष के ही थे, तभी इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। अपने गाँव में प्रारम्भिक शिक्षा परी करने के पश्चात् इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से 1986 ई. में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान जेल जाने के पश्चात् 1940 ई. में काशी विद्यापीठ में इन्होंने अध्यापन कार्य भी किया। इन्होंने 1934 ई. में प्रयाग में ‘अभ्युदय’ पत्रिका का सम्पादन किया। 1943 ई. में बम्बई (अब मुम्बई) की चित्रपट की दनिया में प्रवेश किया तथा उसे अनेक साहित्यिक एवं मधुर गीत प्रदान किए।
बाद में आकाशवाणी से जुड़कर विविध भारती के कार्यक्रमों का संचालन भी किया। 1989 ई. में इनका देहान्त हो गया।
साहित्यिक गतिविधियाँ
छायावादोत्तर युग के प्रमुख व्यक्तिवादी गीतिकाव्य के रचयिता कवियों में नरेन्द्र शर्मा का विशिष्ट स्थान है। नरेन्द्र शर्मा ने साहित्य और लोकमंच कवि सम्मेलनों के माध्यम से जनजीवन को प्रभावित एवं प्रेरित कर साहित्यकार के दायित्व का पूर्ण निर्वाह किया है। इन्होंने कवि सम्मेलनों एवं गोष्ठियों में अपने। गीतों को प्रस्तुत करके लोगों के मन-मस्तिष्क को मोह लिया था। वे विशेष रूप से छोटी भावनाओं को सरसता से व्यक्त करने वाले सफल कवि थे। इनके कुछ गीत फिल्मों में भी रिकॉर्ड किए गए हैं।
कृतियाँ
काव्य-संग्रह शूल-फूल, कर्ण फूल, प्रवासी के गीत, पलाशवन, मिट्टी और फूल, रक्त चन्दन, प्रभात फेरी, प्यासा निर्झर आदि।
खण्ड काव्य द्रौपदी, उत्तर-जय, सुवर्णा।
काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष
- चित्रात्मकता,सजीवता एवं आत्मीयता के भाव भावात्मक अनुभूति की तीव्रता एवं सहजता की दृष्टि से नरेन्द्र शर्मा के गीतों की अपनी विशिष्टता है। उनके गीतों में चित्रात्मकता, सजीवता एवं आत्मीयता के भाव हैं।
- क्रान्तिकारी दृष्टिकोण छायावादोत्तरकाल में अपने प्रणय गीतों,
सामाजिक भावना एवं क्रान्तिवाहक कविताओं से जनमत को बहुत गहराई से प्रभावित करने वाले कवियों में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। - विद्रोही स्वर शर्मा जी ने आक्रोश-भरे विद्रोही स्वर में विशाल जनमानस की विवशता, विद्रोह की भावना एवं नव निर्माण की चेतना को मुखरित किया है।
- प्रकृति चित्रण इनके प्रकृति चित्रण में सरलता से हृदय को आकर्षित कर लेने की क्षमता है। इनमें प्रकृति को आकर्षक रूप देने में अत्यधिक कुशलता है।
कला पक्ष
- भाषा नरेन्द्र शर्मा ने अपने साहित्य में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया है किन्तु उसके उपरान्त भी उनकी भाषा सरल, सुबोध और प्रभावशाली बन पड़ी है।
- शैली इनकी रचनाओं में लाक्षणिकता, चित्रोपमता एवं प्रतीकात्मकता प्रचुरता से उपलब्ध हैं।
- अलंकार एवं छन्द शर्मा जी के काव्य में अलंकारों एवं छन्दों का बड़ा ही स्वाभाविक, सजीव और सुन्दर प्रयोग हुआ है।
हिन्दी साहित्य में स्थान
अपने प्रणय गीतों, सामाजिक भावना एवं क्रान्तिकारी कविताओं से लोगों को प्रभावित करने वाले कवियों में नरेन्द्र शर्मा प्रमुख हैं। एक उत्कृष्ट गीतकार के रूप में नरेन्द्र शर्मा का हिन्दी साहित्य में सदैव एक विशिष्ट स्थान रहेगा।
पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या
मधु की एक बूंद
- मधु की एक बूंद के पीछे
मानव ने क्या क्या दुःख देखे।
मधु की एक बूंद धूमिल घन
दर्शन और बुद्धि के लेखे!
शब्दार्थ मुध-आनन्द, धूमिल घन-मटमैले बादल; लेख-हिसाब-किताब।
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित नरेन्द्र शर्मा द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘बहुत रात गए’ में ‘मधु की एक बूंद’ शीर्षक कविता से उद्धृत
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि सृष्टि की हर चेतना ‘मधु की एक बूंद’ अर्थात् सम्प्राप्ति के लिए जीवन भर प्रयत्नशील रहता है।
व्याख्या कवि कहता है कि मधु की एक बूंद अर्थात आनन्द की प्राप्ति के । लिए सृष्टि में निवास करने वाले प्रत्येक जीव/प्राणी ने न जाने कितने ही दुःख झेले है, मनुष्य के इन द:खों का वर्णन करना सम्भव नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है। कि मनुष्य जीवनपर्यन्त आनन्द की प्राप्ति के प्रयासों में लगा रहता है और उसे आनन्द के ये क्षण अनेक दुःखों का सामना करने के फलस्वरूप प्राप्त होते हैं, जिन्हें अभिव्यक्त करना असम्भव है कवि दर्शन साहित्य, बुद्धि आदि सभी के प्राणतत्त्व के रूप में मधु की एक बूंद को प्रतिष्ठित करते हुए कहते हैं कि दर्शन और बुद्धि के लिए आनन्द का वह एक क्षण, मटमैले बादल के समान बना हुआ है, जिस प्रकार मटमैले बादलों के दूसरी तरफ सब अप्रत्यक्ष रूप से रहता है अर्थात् कुछ भी दिखाई नहीं देता उसी प्रकार आनन्द की वास्तविक अनुभूति भी सम्भव नहीं है कवि कहता है दर्शन और बुद्धि इस आनन्द की खोज में लगे हुए हैं, किन्तु अभी तक वे इस मार्ग में सफलता प्राप्त नहीं कर सके हैं।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) कवि के अनुसार, सृष्टि में प्रत्येक प्राणी के क्रियाकलाप आनन्द की खोज के लिए ही है।
(ii) रस शान्त
कला पक्ष
भाषा साहित्यिक खड़ीबोली शैली गीतात्मक
छन्द मुक्त अलंकार उपमा, रूपक एवं अनुप्रास
गुण प्रसाद शब्द शक्ति लक्षणा
- 2 सृष्टि अविद्या का कोल्हू यदि,
विज्ञानी विद्या के अन्धे;
मधु की एक बूंद बिन कैसे
जीव करे जीने के धन्धे!
शब्दार्थ सृष्टि-संसार, अविद्या-अज्ञान, धन्धे-कार्य।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
प्रसंग कवि ने यहाँ यह बताना चाहा है कि मनुष्य आनन्द का अभिलाषी है। और इस क्षण को प्राप्त करने के लिए वह सदैव प्रयत्नशील रहता है। ।
व्याख्या कवि कहता है कि सम्पूर्ण सृष्टि आनन्द की खोज में प्रयत्नशील है, वह मधु की एक बूंद अर्थात् आनन्द की क्षणिक प्राप्ति के लिए अज्ञान के कोल्ह में बैल की भाँति जती हई है और उसके चारों ओर चक्कर लगा रही है। कहने का तात्पर्य यह है कि सम्पूर्ण पथ्वीवासी अपने अज्ञान के कारण ही आनन्दा के सुख की प्राप्ति नहीं कर पा रहे हैं तथा व्यर्थ ही आनन्द के मार्ग में निरन्तर
क्रियाशीलता का अनुसरण कर रहे हैं। आगे कवि कहता है कि जितने भी ज्ञानी है, विद्वान् हैं उनमें अहम् भाव घर कर गया है अर्थात् वे अपने ज्ञान के अहंकार में अन्धे हो रहे हैं। आनन्द की प्राप्ति का मार्ग उन्हें भी ज्ञात नहीं है। कवि कहता है, आनन्द के अभाव में मनुष्य जीवन को जीने का संचालन कैसे कर सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि खुशी या आनन्द के बिना मनुष्य जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। किसी कार्य के फलस्वरूप यदि मनुष्य को आनन्द का अनुभव न हो तथा उसे प्राप्त करने की कोई प्रेरणा न हो तो व्यक्ति मार्ग में ही
थककर बैठ जाएगा।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) मनुष्य आनन्द का अभिलाषी है तथा आनन्द के अभाव में उसकी जीवन में प्रगति व्यर्थ है।
(ii) रस शान्त
कला पक्ष
भाषा साहित्यिक खड़ीबोली शैली गीतात्मक
छन्द मुक्त अलंकार उपमा और अनुप्रास
गुण प्रसाद शब्द शक्ति लक्षणा
- 3 मधु की एक बूंद से भी यदि
जुड़ न सके मन का अपनापा,
क्यों दे श्रमिक पसीना, सैनिक
लहू, करे क्यों जाया जापा!
शब्दार्थ अपनाप-अपनापन, आत्मीयता, अपनत्व; लहू-खून; जाया-नारी; जाप-प्रसवा
सन्दर्भ पूर्ववत्।
प्रसंग कवि ने प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से यह स्पष्ट करना चाहा है कि मनुष्य द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य आनन्द की खोज के लिए ही है।
व्याख्या कवि कहता है कि मधु अर्थात आनन्द से यदि मनुष्यों के बीच आत्मीयता उत्पन्न नहीं होती या उन्हें अपने कार्य के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होकर भी आनन्द की प्राप्ति नहीं होती. तो फिर व्यर्थ ही मजदूर अपना पसीना क्यों बहाएगा। सैनिक सीमाओं की रक्षा के लिए व्यर्थ ही क्यों अपना लहू बहाएगा और नारी भी प्रसव के कष्ट और पीड़ा को क्यों सहन करेगी। कहने का तात्पर्य
यह है सृष्टि में विद्यमान प्रत्येक प्राणी का कार्य आनन्द की प्राप्ति के लिए सम्पादित किया जाता है। यदि अपने कर्त्तव्य कर्म के फलस्वरूप मनुष्य को पर्याप्त आनन्द की प्राप्ति नहीं होगी, तो मनुष्य व्यर्थ ही समस्याओं का सामना क्यों करें। यह आनन्द का भाव विश्वबन्धुत्व की भावना को भी स्वयं समाहित किए हुए है।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(1) जगत् का प्रत्येक कार्य मधु की एक बूंद अर्थात् आनन्द की प्राप्ति के लिए ही किया जाता है।
(ii) रस शान्त
कला पक्ष
भाषा साहित्यिक खड़ीबोली शैली गीतात्मक
छन्द मुक्त अलंकार अनुप्रास गुण प्रसाद शब्द शक्ति लक्षणा
- 4 मधु की एक बूंद से बच कर, व्यक्ति मात्र की बची चदरियाः ।
ना घर तेरा, ना घर मेरा, रैन-बसेरा बनी नगरिया!
शब्दार्थ चदरिया चादर, जीवन रैन-बसेर-रात्रि का निवास स्थान
नगरिय-नगर।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
प्रसंग कवि ने आनन्द अथवा आत्मसन्तुष्टि के अभाव में मनुष्य में उत्पन्न । स्वार्थ की भावनाओं को उद्घाटित करने का प्रयास किया है।
व्याख्या कवि का मानना है कि मनुष्य के झूठ एवं आडम्बर की चादर के अस्तित्व के पीछे भी आनन्द की एक बूंद की प्राप्ति न होना हैं अर्थात् मनुष्य को अपने कार्यानुसार जब फल की प्राप्ति नहीं होती तभी मनुष्य में झूठ एवं आडम्बर रूपी भावनाओं का वास होता है। इसी के अभाव में आज मनुष्यता अर्थात् मानवता के स्थान पर व्यक्तिगत भावनाएँ मनुष्यों पर होती हैं। आगे कवि कहता
है कि यह संसार तो क्षणिक है, रेन बसेरा है अर्थात् कुछ समय का आवास है, यहाँ मनुष्य केवल कुछ समय के लिए ही है। यह न तो मेरा घर है और न ही किसी अन्य का। कहने का तात्पर्य यह है कि यहाँ स्थायी रूप से कोई भी विद्यमान नहीं रहता, यह किसी का स्थायी घर नहीं है।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) कवि ने यह स्पष्ट किया है कि यह संसार क्षणिक है, यहाँ मेरा, तेरा कुछ भी नहीं है अर्थात स्थायी रूप से यहाँ कोई भी विद्यमान नहीं है।
(ii) रस शान्त
कला पक्ष
भाषा परिनिष्ठित खड़ीबोली शैली गीतात्मक
छन्द मुक्त अलंकार उपमा एवं रूपक
गुण प्रसाद शब्द शक्ति लक्षणा
- 5 मधु की एक बूंद बिन, रीते पाँचों कोश और पाँचों जन;
मधु की एक बूंद बिन, हम से सभी योजनाएँ सौ योजन!
मधु की एक बूंद बिन, ईश्वर शक्तिमान भी शक्तिहीन है!
मधु की एक बूंद सागर है हर जीवात्मा मधुर मीन है।
शब्दार्थ रीते-खाली; पाँचों जन-पाँच इन्द्रियाँ शक्तिमान-शक्तिशाली.
शक्तिहीन कमजोर; मीन-मछली।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
प्रसंग कवि ने यह स्पष्ट किया है कि आनन्द ही मनुष्य के जीवन का आधार हैं
व्याख्या कवि कहता है कि आनन्द की एक बूंद के अभाव में पंचकोश तथा । पंचजन सभी शून्य व निष्प्रभ हैं अर्थात् मनुष्य को यदि आनन्द के क्षण ही प्राप्त न हो तो उसके शरीर को संगठित करने वाले पाँच कोश अर्थात् पंचकोश तथा पंचजन का अस्तित्व हीन है, उनका कोई महत्त्व ही नहीं रह जाएगा। आगे कवि कहता है कि इस आमन्द के अभाव में हमारी सभी योजनाएँ हमारे सभी कार्य व्यर्थ ही प्रतीत होते हैं अर्थात् सौ योजन (दूरी का एक प्राचीन नाप)
दूर प्रतीत होती है। आनन्द के बिना सर्वशक्तिमान भी शक्तिहीन की भाँति है, कवि आनन्द के एक क्षण के महत्त्व को उजागर करते हुए कहते हैं कि आनन्द । की एक बूंद मनुष्य के लिए सागर के समान है और प्रत्येक जीवात्मा उसको । मनोहर मछली है।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
कवि ने आनन्द के महत्त्व को प्रतिपादित किया है।
(ii) रस शान्त
कला पक्ष
भाषा परिनिष्ठित खड़ीबोली शैली गीतात्मक छन्द मुक्त
अलंकार रूपक, उपमा एवं अनुप्रास गुण प्रसाद
शब्द शक्ति लक्षणा
- 6 मधु की एक बूंद पृथ्वी में, मधु की एक बूंद शशि-रवि में
मधु की एक बूंद कविता में, मधु की एक बूंद कवि में।
मधु की एक बूंद के पीछे, मैंने अब तक कष्ट सहे शत,
मधु की एक बूंद मिथ्या है, कोई ऐसी बात कहे मत!
शब्दार्थ शशि-रवि-चन्द्रमा और सूर्य; शत-सैकड़ों; मिथ्या-झूठी, असत्य।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
प्रसंग प्रस्तत पद्यांश के माध्यम से कवि ने यह स्पष्ट किया है कि सष्टि का प्रत्येक प्राणी मधु की एक बूंद का अभिलाषी है और इसी क्षण को प्राप्त करने के लिए वह सदैव प्रयत्नशील रहता है।
व्याख्या कवि मधु अर्थात् आनन्द के क्षण को सर्वत्र विद्यमान मानता है। मधु को यह बूंद पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा, कविता और कवि आदि में विद्यमान है। कवि के अनुसार, सृष्टि का प्रत्येक प्राणी आनन्द की खोज में लगा रहता है। कवि की कविता भी आनन्द की खोज और उसकी प्राप्ति का ही परिणाम है। आगे कवि कहता है कि मधु की एक बूंद के लिए मनुष्य को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, किन्तु फिर भी वह इसके लिए अनेक प्रकार के दुःखों एवं कष्टों को सहन करने हेतु सहर्ष तैयार रहता है, कहने का तात्पर्य यह है कि जीवन में आनन्द की प्राप्ति के लिए सभी चेतन पदार्थ प्रयत्नशील रहते हैं अर्थात् मनुष्य जीवनपर्यन्त आनन्द की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहता है, इसलिए आनन्द को मिथ्या मानना सर्वथा गलत है।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) कवि ने आनन्द के महत्त्व को प्रतिपादन किया है तथा स्पष्ट किया है कि आनन्द को प्राप्त करने के लिए सभी चेतन पदार्थ प्रयत्नशील रहते हैं।
(ii) रस शान्त
कला पक्ष
भाषा परिनिष्ठित खड़ीबोली शैली गीतात्मक
छन्द मुक्त अलंकार रूपक एवं उपमा
गुण प्रसाद शब्द शक्ति लक्षणा
पद्यांशों पर अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न उत्तर
मधु की एक बूंद
- मध की एक बूंद के पीछे मानव ने क्या क्या दु:ख देखे।
मधु की एक बूंद धूमिल घन दर्शन और बुद्धि के लेखे!
सृष्टि अविद्या का कोल्हू यदि, विज्ञानी विद्या के अन्धे;
मधु की एक बूंद बिन कैसे जीव करे जीने के धन्धे!
उपरोक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत पद्यांश पंक्तियाँ किस कविता से अवतरित हैं तथा उसके रचनाकार कौन हैं?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश पंक्तियाँ ‘मधु की एक बूंद’ कविता से अवतरित हैं तथा इसके रचनाकार नरेन्द्र शर्मा जी हैं।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि सृष्टि में प्रत्येक प्राणी के क्रियाकलाप आनन्द की खोज के लिए ही होते हैं। मनुष्य आनन्द का अभिलाषी है और इस क्षण को प्राप्त करने हेतु वह सदैव प्रयत्नशील रहता है।
(iii) कवि के अनसार किसकी अभिव्यक्ति असम्भव है?
उत्तर कवि कहता है कि मनुष्य जीवन-पर्यन्त आनन्द की प्राप्ति हेतु प्रयासों में लगा रहता है और उसे आनन्द के ये क्षण अनेक दुःखों का सामना करने के फलस्वरूप प्राप्त होते हैं, जिन्हें अभिव्यक्त करना असम्भव है।
(iv) कवि के अनुसार पृथ्वीवासी को सुख की प्राप्ति क्यों नहीं हो पाई है?
उत्तर कवि के अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि आनन्द या सुख की प्राप्ति हेतु कोल्हू के बैल की भाँति चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं अर्थात् सम्पूर्ण पृथ्वीवासी अपनी अज्ञानता के कारण ही आनन्द या सुख की प्राप्ति नहीं कर पा रहे हैं व्यर्थ ही आनन्द के मार्ग में निरन्तर क्रियाशीलता का अनुसरण कर रहे हैं।
(v) प्रस्तुत पद्यांश में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में रूपक, उपमा एवं अनुप्रास अलंकार हैं।
- 2 मधु की एक बूंद बिन, रीते पाँचों कोश और पाँचों जन;
मधु की एक बूंद बिन, हम से सभी योजनाएँ सौ योजन!
की एक बूंद बिन, ईश्वर शक्तिमान भी शक्तिहीन है!
की एक बूंद सागर है हर जीवात्मा मधुर मीन है।
मधु की एक बूंद पृथ्वी में, मधु की एक बूंद शशि-रवि में
मधु की एक बूंद कविता में, मधु की एक बूंद कवि में।
मधु की एक बूंद के पीछे, मैंने अब तक कष्ट सहे शत,
मधु की एक बूंद मिथ्या है, कोई ऐसी बात कहे मत!
उपरोक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि ने आनन्द के महत्त्व को प्रतिपादित किया है। तथा स्पष्ट किया है कि आनन्द ही मनुष्य जीवन का आधार है तथा इसको प्राप्त करने के लिए सभी चेतन पदार्थ प्रयत्नशील रहते हैं।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश में आनन्द के अभाव में किसको महत्त्वहीन बताया गया है?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में आनन्द के अभाव में पंचकोश तथा पंचजन सभी शून्य व निष्प्रभ हैं अर्थात् मनुष्य को यदि आनन्द के क्षण ही प्राप्त न हों, तो उसके शरीर को संगठित करने वाले पाँच कोश अर्थात् पंचकोश तथा पंचजन का अस्तित्वहीन है, उनका कोई महत्त्व नहीं रह जाएगा।
(iii) कवि ने आनन्द के क्षण के महत्त्व को किस प्रकार उजागर किया है?
उत्तर कवि ने आनन्द के एक क्षण के महत्त्व को उजागर करते हुए कहा है कि आनन्द की एक बूंद मनुष्य के लिए सागर के समान है और प्रत्येक जीवात्मा उसकी मनोहर मछली है।।
(iv) “मधु की एक बूंद मिथ्या है, कोई ऐसी बात कहे मत।” इस पंक्ति से कवि का क्या आशय है?
उत्तर इस पंक्ति से कवि का आशय यह है कि जीवन में आनन्द की प्राप्ति के लिए सभी चेतन पदार्थ प्रयत्नशील रहते हैं अर्थात् मनुष्य जीवन-पर्यन्त आनन्द की प्राप्ति के लिए प्रयासरत् रहता है, इसलिए आनन्द को मिथ्या मानना सर्वथा गलत है।
(v) ‘शक्तिहीन’ में कौन-सा समास है? विग्रह करके स्पष्ट कीजिए।
उत्तर शक्तिहीन-शक्ति से हीन (तत्पुरुष समास)।
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